रियासत कालीन बस्तर गोंचा पर्व में नेत्रोत्सव पूजा विधान 19 जून को, भगवान जगन्नाथ का भक्तों-श्रद्धालुओं से आध्यात्मिक मिलान कहलाता है ‘नेत्रोत्सव पूजा विधान’

जगदलपुर। बस्तर गोंचा पर्व 2023 में तय कार्यक्रम के अनुसार 04 जून को देवस्नान पूर्णिमा (चंदन जात्रा) पूजा विधान के साथ बस्तर गोंचा महापर्व का आगाज हो चुका है, 05 जून से 18 जून तक श्रीजगन्नाथ स्वामी के अनसर काल में दर्शन वर्जित था, नेत्रोत्सव पूजा विधान 19 जून को संपन्न करवाया जायेगा। 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष ईश्वर खंबारी ने बताया कि चंदन जात्रा पूजा विधान 04 जून के पश्चात जगन्नाथ स्वामी के अस्वस्थता कालावधि अर्थात अनसर काल के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन वर्जित अवधि में श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में स्थित मुक्तिमण्डप में स्थापित भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र स्वामी के विग्रहों को श्रीमंदिर के गर्भगृह के सामने भक्तों के दर्शनार्थ स्थापित किसे जाने के बाद नेत्रोत्सव पूजा विधान 19 जून को संपन्न किया जावेगा।

360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष ईश्वर खंबारी ने बताया कि बस्तर गोंचा पर्व का वह क्षण जब भगवान जगन्नाथ के नेत्रोत्सव पूजा विधान का होगा तब श्रीमंदिर के बाहर भक्तो-श्रद्धालुओं के लिए भगवान जगन्नाथ विराजमान होंगे। देवस्नान ज्येष्ठ पूर्णिमा,चंदन जात्रा पूजा विधान 04 जून को सम्पन्नता के पश्चात 05 जून से 18 जून तक भगवान जगन्नाथ स्वामी का अनसर काल की अवधि में भगवान के भक्त-श्रधालुओं को भगवान जगन्नाथ के दर्शन से 15 दिनों तक वंचित थे। भगवान जगन्नाथ जगत के पालनकर्ता भी कहलाते है, अर्थात भगवान सर्वव्यापी है, जिनकी नजरों से भक्त-श्रद्धालु कभी भी वंचित नही हो सकते है, लेकिन भगवान की लीला से भक्त-श्रद्धालु अनसर काल के दौरान 15 दिनों तक भगवान के दर्शन से वर्जित हो गए। इतने दिनों तक भगवान के दर्शन से वर्जित होने से यह भक्तो-श्रद्धालुओं के लिए भगवान जगन्नाथ के सुदर्शन चक्र के रक्षा सूत्र से विलग होने जैसे व्याकुलता को दूर करने के लिए भगवान जगन्नाथ श्रीमंदिर के बाहर भक्तो-श्रद्धालुओं के नयनाभिराम के लिए भगवान का भक्तो-श्रधालुओं के पास आना, यह भगवान जगन्नाथ का भक्तो-श्रद्धालुओं के साथ आध्यात्मिक मिलन ही नेत्रोत्सव कहलाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भगवान जगन्नाथ के श्रीमंदिर के बाहर भक्तो-श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए उपलब्धता, भगवान के भक्तो-श्रद्धालुओं से मिलन का यह अवसर या क्षण निकटतम दर्शन का पुण्य लाभ ही नेत्रोत्सव है।

दिनेश के.जी. (संपादक)

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