ग्रामीण परिवेश में पीढ़ियों से मनाया जा रहा रक्षा का त्यौहार ‘बोब्बोल मरई’ पूजा-विधान

बोब्बोल-मरई पूजा कर महार समाज के लोगों ने माता मरई से की समूचे गांव-शहर के रक्षा की कामना

जगदलपुर। शहर में निवासरत महार समाज के लोगों द्वारा विधि-विधान के साथ बोब्बोल मरई पूजा-विधान संपन्न हुआ। इस पूजा विधान के द्वारा समाज के लोगों ने गांव व मरई स्थली की परिक्रमा कर उक्त गांव पर कोई विपत्ति-आपदा का प्रभाव न पडे इसके लिये माता मरई की पूजा-अर्चना कर बंधन किया और माता मरई से गांव-शहर व आमजनों की सुख समृद्धि के लिये कामना की।

इस अवसर पर प्रमुख रूप से तिरूपति झाड़ी, प्रो. नारायण झाड़ी, वीर नारायण दूधी, समैया चन्द्राकर, मल्ला भगत, केशव जुमार, राजकुमार दूधी, भोगेन्द्र मोरला, चन्द्रभान झाड़ी, राजू दूधी, विकास चंद्राकर, कुमार संजू, श्याम चंद्राकर, सत्यनारायण झाड़ी, शंकर चंद्राकर, स्नेहलता चंद्राकार, ईश्वरी सल्लूर, मंजू दूधी, प्रफुल्ला झाड़ी, मुन्नी भगत, झरना कुम्मर, भाग्या सल्लूर सहित समाज के लोग मौजूद रहे।

मरई स्थली पर रंगोली बनाती समाज की महिलाएं
  • जानें क्या है ये परम्परा…

बता दें कि बोब्बोल मरई महार समाज के लोगों के द्वारा मानसून में मनाया जाने वाला विशेष त्यौहार अथवा पूजा-विधान है। जिसमें गांव के मुखिया उपवास रहकर समाज के लोगों के साथ जंगल से पलाश की लकड़ी लेकर आते हैं। इस लकड़ी को छील कर एक विशेष आकार दिया जाता है। जिसके बाद पलाश की इस लकड़ी को मरई स्थली पर स्थापित की जाती है। जहां पकवान व प्रसाद का चढ़ावा कर मरई स्थली के चारों ओर परिक्रमा कर पूजा-अर्चना की जाती है, ताकि गांव पर किसी तरह का कोई संकट आदि न आ पाए। समाज के लोगों की धार्मिक आस्था है कि ऐसा करने से माता मरई गांव की रक्षा करती हैं।

दिनेश के.जी. (संपादक)

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