स्कूल से ही किताबें खरीदना या न खरीदना पेरेंट्स की मर्जी-बाफना
सीजीटाइम्स। 04 मई 2019
जगदलपुर। इन दिनों जगदलपुर शहर के कुछ प्राईवेट स्कूली संस्थाओं द्वारा स्कूल से ही किताबें खरीदने के लिए पेरेंट्स पर अनुचित रूप से दबाव डाला जा रहा है, ऐसे गंभीर मामले पर जिला प्रशासन के द्वारा कोई भी कदम नहीं उठाया जाना प्रशासन की उदासीनता को ही दर्शता है। ऐसे में जगदलपुर शहर के कुछ अभिभावकों के द्वारा पूर्व विधायक संतोष बाफना के समक्ष उपस्थित होकर उन्हें इस परेशानी से अवगत कराया। पूर्व विधायक ने भी अपनी तत्परता दिखाते हुए पत्र के माध्यम से जिला कलेक्टर को प्राइवेट स्कूली संस्थाओं के तानाशाही पूर्ण रवैये की जानकारी दी। पूर्व विधायक संतोष बाफना ने अपने पत्र में उल्लेख किया है कि शहर के कुछ प्राईवेट स्कूली संस्थाओं के द्वारा स्कूल के ही स्टेशनरी से किताबें, यूनीफाॅर्म व अन्य स्टेशनरी का सामान खरीदने के लिए अनुचित रूप से पेरेंट्स पर दबाव डाला जा रहा है। इन स्कूलों में फीस में बढ़ोतरी, ज्यादा एनुअल चार्जेस वसूलने और एनसीईआरटी की जगह प्राईवेट पब्लिशर्स की महंगी किताबें बाजार भाव से भी अधिक मनमाने दाम पर बेची जा रही है, जो कि गैरकानूनी है। जहां तक प्राइवेट पब्लिशर्स की माहंगी किताबों का सवाल है तो वह भी बाजार में 10 से 15 फीसदी कम दरो पर उपलब्ध होती है। इस स्थिति में पेरेंट्स क्यों माहंगी दर पर स्कूल से किताबें व अन्य सामान खरीदें ? इसके लिए भी स्कूल के मैनेजमेंट के द्वारा पेरेंट्स को मजबूर कर किताबें खरीदने के लिए मानसिक रूप से परेशान किया जा रहा है। पूर्व विधायक संतोष बाफना ने अपने पत्र में उन बातों का भी ज़िक्र किया है जिसके माध्यम से स्कूली संस्थाओं के द्वारा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के जिस आदेश का हवाला देकर बच्चों के पेरेंट्स पर दबाव डालने का काम हो रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट के जारी आदेश के अनुसार वह आदेश सिर्फ दिल्ली क्षेत्र में ही प्रभावशील है न कि समस्त देश की स्कूली संस्थाओं पर। और वैसे भी इन प्राइवेट संस्थाओं का कार्य बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध करवाना है। अभिभावक भी इस उम्मीद से ही बच्चों का इन प्राइवेट संस्थाओं में दाखिला करवाते है कि बच्चों को बेहतर से बेहतर शिक्षा हासिल हो सके है, परंतु इन संस्थाओं के द्वारा शिक्षा के केन्द्र को ही व्यावसायिक केन्द्र बना दिया गया है। संतोष बाफना ने जिला कलेक्टर को पूर्ववर्ती सरकार द्वारा लिये गये निर्णय से भी अवगत कराने का प्रयास किया है जिसमें छ.ग. शासन के द्वारा राज्य के समस्त स्कूलों में चाहे वह निजी हो या शासकीय, स्टेशनरी के विक्रय पर पहले से ही पाबंदी है, जिसे मानना हर उस स्कूल के लिए आवश्यक है जो छ.ग. राज्य के अधीन आते है। यदि फिर भी इन संस्थाओं के द्वारा इस प्रकार का कार्य किया जा रहा है तो ऐसी स्थिति में यह छ.ग. शासन के आदेश की अवहेलना है। पत्र के अंत संतोष बाफना ने संबंधित प्रकरण की जांच और दोषी स्कूली संस्थाओं के विरूद्ध कानूनी कार्यवाही करने की मांग की है ताकि इस प्रकार के तानाशाही पूर्ण आदेश से पेरेंट्स को राहत मिल सके और भविष्य में इस प्रकार का कृत्य किसी भी संस्था के द्वारा दोहराया न जा सके ।
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