नई दिल्ली। भारत दुनिया के उन चंद देशों में से एक है जहां कोविड-19 से होने वाली मृत्यु दर काफी कम है। देश में यह दर 1.76 प्रतिशत है जबकि वैश्विक स्तर पर यह 3.3 प्रतिशत है। भारत में प्रति दस लाख आबादी पर कोविड से मरने वालों की संख्या दुनिया में सबसे कम है जबकि इसका वैश्विक औसत प्रति दस लाख आबादी पर 110 है। देश में इस समय प्रति दस लाख आबादी पर कोविड से मरने वालों की संख्या 48 रह गई है जबकि ब्राजील और ब्रिटेन में यह आंकड़ा प्रति दस लाख आबादी पर क्रमश 12 और 13 गुना अधिक है।
कोविड प्रबंधन और रोग से निबटने के लिए तैयार की गई नीति के तहत केंद्र सरकार कोविड से होने वाली मौत के मामलों को कम करने के लिए कोविड के गंभीर रोगियों को गुणवत्ता युक्त नैदानिक देखभाल प्रदान करके उनका जीवन बचाने पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रही है । केन्द्र के साथ राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश की सरकारों के सहयोगात्मक प्रयासों के परिणामस्वरूप देश भर में स्वास्थ्य सुविधाएं काफी बेहतर हुई हैं। देश में इस समय 1578 कोविड समर्पित अस्पतालरोगियों को गुणवत्ता युक्त चिकित्सा देखभाल प्रदान कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने नैदानिक उपचार प्रोटोकोल के तहत अस्पतालों के लिए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं।
कोविड के गंभीर रोगियों के नैदानिक प्रबंधन के मामले में आईसीयू में तैनात डॉक्टरों की क्षमता बढ़ाने की एक अनूठी पहल, के तहत ई-आईसीयू की शुरुआत नई दिल्ली स्थित एम्स अस्पताल की ओर से की गई है। इसके तहत सप्ताह में दो बार, मंगलवार और शुक्रवार को, सरकारी अस्पतालों में आईसीयू में तैनात डॉक्टरों के लिए डोमेन विशेषज्ञों द्वारा टेली / वीडियो-कॉन्फ्रेंस सत्र आयोजित किए जाते हैं। ये सत्र 8 जुलाई 2020 से शुरू हुआ है।
अब तक, 17 टेली-सत्र आयोजित किए गए हैं, जिनमें 204 संस्थानों ने भाग लिया है।
गंभीर रोगियों के उपचार के लिए डॉक्टरों की आईसीयू / नैदानिक प्रबंधन क्षमता को और बढ़ाने के लिए, स्वास्थ्य मंत्रालय के सहयोग से एम्स नई दिल्ली ने उपचार को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों की एक सूची तैयार की है जिन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। इसे https://www.mohfw.gov.in/pdf/AIIMSeICUsFAQs01SEP.pdf पर देखा जा सकता है।
ये अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति काफी डायनेमिक है। इसे आईसीयू में कोविड के गंभीर रोगियों की नैदानिक देखभाल के दौरान मिले अनुभवों के आधार पर तैयार किया गया है। उपचार के दौरान डाक्टरों के समक्ष नित नई चुनौतियां पैदा होती रहती हैं जिनका निदान उन्हें करना पड़ता है, ऐसे में प्रश्नों की यह सूची उनका ज्ञानवर्धन करने तथा उन्हें नई जानकारियों उपलब्ध कराने में काफी मददगार होगी।
कोविड-19 के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों को लेकर नई दिल्ली के एम्स द्वारा ई-आईसीयू के नाम से तैयार प्रश्नों की सूची:
क्या हम हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को रोग निरोधक के रूप में स्वास्थ्य कर्मियों को दे सकते हैं ?
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) को स्वास्थ्य सेवा कर्मियों तथा उच्च जोखिम वाले संपर्कों की स्थिति में निर्विवाद रूप से रोगनिरोधक के रूप में देने की सलाह दी गई है। पर कोविड के संक्रमण से बचाव के लिए पीपीई सूट तथा अन्य उपाय भी इसके साथ करने जरुरी हैं।
क्या आइवरमेक्टिन का इस्तेमाल कोविड के रोगियों के लिए किया जा सकता है ?
आइवरमेक्टिन को सार्स सीओवी2 की प्रकृति वाले रोग के लिए एक प्रबल अवरोधक के रूप में पाया गया है, लेकिन इसका प्रभाव सही रूप में हो सके इसके लिए इसकी आवश्यक खुराक सामान्य खुराक से अधिक है। ऐसे में वर्तमान में यह कोविड के उपचार के लिए जारी किए गए राष्ट्रीय दिशानिर्देशों में अनुशंसित नहीं है, लेकिन इसे उन रोगियों को दिया जा सकता है जिन्हें इलाज के रूप में अपरिहार्य रूप से एचसीक्यू दिये जाने की सलाह दी गई है।
क्या उपचार के बाद ठीक होकर अस्पताल से जा चुके मरीजों को खून के थक्के जमने से बचाव करने वाली दवा बाद में भी दी जाती रहनी चाहिए ?
हमारे अनुभव के हिसाब से कोविड से ठीक होकर जा चुके मरीजों में ऐसी कोई जटिलता नहीं देखी गई है। क्योंकि उपचार के दौरान ऐसे लक्षणों पर नियंत्रण पा लिया जाता है इसलिए जब मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है तो ऐसी परेशानी होने का खतरा भी कम हो जाता है। इसलिए हमलोग ऐसे मरीजों को खून के थक्के जमा होने से बचाव वाली कोई दवा देन की सलाह नहीं देते हैं जब तक कि उन्हें आगे डीवीटी या प्रोस्थेटिक सर्जरी आदि की सलाह नहीं दी गई होती है।
कोविड से अचानक होन वाली मृत्यु ?
आपातकालीन विभाग मे लाए जाने के साथ ही या फिर अस्पताल में उपचार के दौरान अचानक कोविड से मौत होने की घटनाएं सामने आयी हैं। ऐसा थ्रोम्बोटिक जटिलता, अचानक दिल का दौरा पड़ने या फिर उपचार के दौरान सुशुप्त हाइपोक्सिया की अनदेखी हो जाने की वजह से होता है। इसलिए पहले से सीएडी या फेफड़ों की गंभीर बीमारी से पीड़ित कोविड रोगियों की कड़ाई से निगरानी की जानी चाहिए। उन्हें अकेले कहीं आने जाने नहीं दिया जाना चाहिए। जिन रोगियों में रक्तस्राव का कोई जोखिम नहीं है उन्हें भी उपचार के दौरान खून के थक्के जमने से रोकने वाली दवा दी जानी चाहिए।
मिथाइल प्रेडनिसोलोन बनाम डेक्सामेथासोन ?
कॉरटीकोस्टेराय्ड लवण होने के संकेत कोविड के हल्के या गंभीर मरीजों में पाए जाते हैं। ऐसे में इन मरीजों के उपचार के लिए किए गए परीक्षणों के दौरान डेक्सामेथासान का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि उपलब्धता के आधार पर आईवी डेक्सामेथासान या मिथाइल प्रेडनिसोलोन दोनों का उपयोग किया जा सकता है।
उपचार में टोसीलिजुबाम की क्या भूमिका है ?
महामारी के मौजूदा दौर को ध्यान में रखते हुए दयाभाव के आधार पर भारतीय औषधीय मंहानियंत्रक की ओर से इस दवा के इस्तेमाल को मंजूरी दी गई है। हालांकि उपचार कि लिए इसका इस्तेमाल परीक्षण के तौर पर किया जाता है ऐसे में इसकी सीमित भूमिका है। इसलिए इसका इस्तेमाल केवल साइटोकीन सिंड्रोम वाले रोगियों में किया जाना चाहिए जिनमें संक्रमण ज्यादा नहीं हो।
प्लाज्मा थेरेपी की भूमिका क्या है ?
एबीओ के माध्यम से मैच किए गए डोनर से एकत्र किए गए प्लाज्मा को उच्च न्यूट्रलाइज़िंग टाइटर्स के साथ कोविड संक्रमण के उच्च जोखिम वाले रोगियों को शुरुआती चरण में दिया जा सकता है हालांकि, इसे भी एक प्रायोगिक थेरेपी के रूप में ही लिया जाना चाहिए और इसके उपयोग में पूरी सावधानी बरती जानी चाहिए।
फेवीपिरावीर दवा की क्या भूमिका है ?
अध्ययनों से पता चला है कि यह दवा कोविड के हल्के या बिना लक्षण वाले रोगियों में ही प्रभावी है। दावा किया जाता है कि यह दवा शुरुआती चरण में ही संक्रमण को आगे बढ़ने से रोकने में कारगर है। हालांकि हल्के और बिना लक्षण वाले मरीज नियमित निगरानी और अच्छी देखभाल से खुद ही ठीक हो जाते हैं। फेवीपिरावीर के बहुत प्रभावी होने के कोई ठोस साक्ष्य भी नहीं हैं इसलिए कोविड के इलाज के लिए जारी राष्ट्रीय दिशा निर्देशों में इसकी अनुशंसा नहीं की गई है।
फेफड़े के फाइब्रोसिस की रोकथाम में एंटीफिब्रोटिक की भूमिका ?
कोविड से संबधित फाइब्रोसिस की रोकथाम के लिए एंटीफिब्रोटिक ऐजेंट के तौर पर परफेनीडोन के इस्तेमाल के बेहतर नतीजों के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं इसलिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
अवसाद से कोविड के मरीजों को किस तरह बचाया जाए ?
अवसाद कोविड के रोगियों में एक आम लक्षण है, जो कई कारणों से हो सकता है जिनमें अलग रहना, बीमारी से संबंधित चिंता, सामाजिक उपेक्षा और अन्य बातें शामिल हैं। ऐसे रोगियों को पूरी सहानुभूति और प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों से परामर्श की आवश्यकता होती है।
क्या हम सभी तरह की जांच में नेगेटिव पाए गए लेकिन अत्यधिक संदिग्ध कोविड रोगियों को रेमडेसिवीर/ टीसीजेड दे सकते हैं ?
रेमडेसिवीर /टीसीजेड प्रायोगिक उपचार है जो मौजूदा महामारी को देखते हुए डीसीजीआई द्वारा अनुमोदित किया गया है इसलिए इनका संदिग्ध मामलों के लिए अनुभवजन्य थेरेपी के रूप में उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। इन दवाओं का इस्तेमाल केवल कोविड के पुष्ट रोगियों में ही किया जाना चाहिए जहां उनके नैदानिक उपचार की बात कही गई हो।
क्या मेथीलाइन ब्लयू दवा दी जा सकती है ?
बिल्कुल नहीं। कोविड के इलाज में इस दवा की कोई भूमिका नहीं है।
रेमडेसिवीर दवा कब तक दी जा सकती है ?
यह दवा प्रति दिन एक बार के हिसाब से पांच दिन तक दिए जाने की सलाह दी जाती है।
क्या रेमडेसीविर/टीसीजेड दवा पहले से कई बीमारियों से जूझ रहे कोविड के बिना लक्षण वाले मरीजों को दी जा सकती है?
पहले से कई बीमारियों से ग्रसित कोविड के बिना लक्षण वाले मरीजों को इसका फायदा होने के कोई प्रमाण नहीं हैं।
क्या परिजनों को कोविड के मरीजों से मिलने के लिए वार्ड के अंदर आने की अनुमति दी जानी चाहिए ?
रोगियों के परिजनों को वार्ड में आने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। इससे उनके संक्रमित होने तथा आगे उनके माध्यम से और लोगों के संक्रमित होने का खतरा हो सकता है।
क्या कोविड पॉजिटिव बच्चों के साथ उनके अभिभावकों को रहने की इजाजत दी जानी चाहिए ?
अभिभावकों को इसके जोखिमों के बारे में बता दिया जाना चाहिए और इस बारे में उनकी इच्छा जानने के बाद ही रहने की अनुमति दी जानी चाहिए।
अस्पताल से छुट्टी दिए जाने के वक्त भी लोगों को एस्टेरॉयड देना जारी रखना चाहिए?
नहीं। इसकी कोई आवश्यकता नहीं है जब तक उसे किसी और बीमारी के लिए इसकी आवश्यकता न हो।
हम वेंटिलेटर पर रखे गए मरीज को पोषाहार किस तरह देना जारी रख सकते हैं ?
ऐसे मरीजों की स्थिति के हिसाब से उन्हें टीपीएन या आरवाईए ट्यूब के माध्यम से खाना दिया जा सकता है।
मरीज को कब एनआईसी से इनवेसिव वेंटिलेटर पर रखा जाना चाहिए ?
यदि मरीज यथास्थिति बनाए रखने में अक्षम है , उसे सांस लेने में दिक्कत आ रही है या फिर उसका जीसीएस एनआईवी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है तो ऐसी स्थिति में मरीज को इनवेसिव वेंटिलेटर पर रख दिया जाना चाहिए।
मरीज के गले में चीरा लगाकर सांस लेने के लिए अलग से रास्ता बनाए जाने की प्रक्रिया ट्रैचेस्टोमी का फैसला कब लिया जाना चाहिए ?
जिस मरीज को काफी लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखे जाने की संभावना हो उसके लिए यह प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।