संपादकीय

दल-बदल की राजनीति हो या आरोप-प्रत्यारोप की, इन सारे राजनीतिक चेहरों का असली चेहरा होगा चुनाव में उजागर

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जगदलपुर। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इन दिनों बस्तर में दिखावे की राजनीति हावी है। कभी इस दल में तो कभी उस दल में शामिल होने की खबरें अक्सर सुनने में आती हैं। सभी राजनीतिक दल अपने उल्लू सीधे करने में लगे हैं। किसी दल को मुद्दा मिल जाता है तो किसी दल को मुद्दा बनाना पड़ जाता है। विगत कुछ महीनों से विधानसभा चुनाव को करीब आता देख बस्तर की सारी राजनीतिक पार्टियां ऐसे सक्रीय हो गयीं हैं जैसे मतदाता ही सर्वोपरी है व मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं।

बस्तर की बारह सीटों पर चुनाव होने हैं, जिसके मद्देनज़र कभी दल-बदल की राजनीति, तो कभी आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति चरम पर है। दल-बदलने व दिखावे के बीच यह सामान्य बात है कि इन चहरों का असली चेहरा तो चुनाव में ही उजागर होगा। चौक-चौराहों से लेकर गली नुक्कड़ तक राजनीतिक चर्चे आम हो गये हैं। जो राजनीति का “र” तक नहीं समझते वे भी इस संदर्भ में ज्ञान पेले पड़े हैं। सारे दल पूरे बल से अपने-अपने बुथ स्तर से चुनाव जीतने की तैयारी में जुट चुके हैं।

चूंकि बस्तर के तेवर हमेशा ही विद्रोही रहे हैं। बस्तर की उड़ान लहरों के विपरीत रहती है। बस्तर के लोग धारा के साथ नहीं बहते, वे अपना रास्ता और इतिहास खुद तय करते हैं। इस बार विधानसभा में ये देखना रोचक होगा कि कौन सी पार्टी किस उम्मीदवार पर दाव लगाती है। काबिल-ए-गौर है कि राज्य की सत्ता में बस्तर की अहम भूमिका होती है, जहां बस्तर की हवा नये चेहरों को मौका तो देती है लेंकिन परखकर इसलिए ऐसा कहा जा रहा है कि सही उम्मीदवार ही किसी पार्टी की जीत का कारण बनेंगे।

_दिनेश के.जी.

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