शिक्षकों के जिद से उफनते नाले पर तैयार हुआ शिक्षा का सेतु… नक्सलगढ़ में शिक्षा की अलख जगाने जान जोखिम में डाल पहुँचते हैं शिक्षक…

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बीजापुर। जिस सड़क पर पुल निर्माण के कार्य मे नक्सलियों ने खूनी खेल खेला था। आगजनी और हत्या की घटना को अंजाम दिया था। जिसके बाद सरकारी तंत्र ने इस सड़क निर्माण में घुटने टेक दिए थे। उसी खूनी सड़क से उफनती नदी पर शिक्षा की अलख जगाने शिक्षक अपनी जिद से नदी पर अस्थायी सेतु का निर्माण कर नदी को अपने हौंसले से झुकाकर स्कूल पहुँच रहे हैं।

करीब 15 से 20 मीटर चैड़ा यह बरसाती नाला हाल के दिनों में मूसलाधार बारिश के चलते उफान पर था तब पेद्दाकवाली, चिन्नाकवाली स्थित स्कूल, आश्रमों में तालाबंदी के पूरे आसार थे, जो नहीं हुआ। इन्हीं स्कूल और आश्रम में पदस्थ शिक्षकों के जज्बे और जिद के आगे परिस्थितियोन ने घुटने टेक दिए।
झमाझम बारिश के बीच चिन्नाकवाली और पेद्दाकवाली के 11 स्कूलों के दो दर्जनभर से अधिक शिक्षक-शिक्षिकाओं ने बच्चों की पढ़ाई प्रभावित ना हो, इसलिए उफनते नाले पर रपटा तैयार करने का फैसला किया। हालांकि यह कार्य भी काफी चुनौतीपूर्ण था, बावजूद प्रशासन से मदद की अपेक्षा ना रखते हुए खुद मैदान पर उतरे। सैकड़ों बोरियों में रेत भरी और कमर से उपर बह रहे पानी में भी देखते ही देखते रपटा तैयार कर लिया। परेशानी यही हल नहीं हुई, बारिश तेज होती तो नाला और भी उफनती, रेत भरी बोरियां बह जाती, बावजूद शिक्षको की जिद आगे भी बरकरार रही। इस तरह
परिस्थितियों पर जीत हासिल कर शिक्षक बाढ़ के बीच भी बीते डेढ़ महीने तक स्कूल पहुंचते रहे। शिक्षकों की जिद का सिलसिला यही नहीं थमा, चिंगार बहार नाले के आगे चिंतावागु नदी भी पड़ती है। हालांकि गहरी नदी पर रपटा तैयार करना मुमकिन
नहीं है, बावजूद इसके सिर से उपर बहते पानी में भी कई दफा हिम्मत से आगे बढ़े। शिक्षकों के इस हौसले ने बच्चों के साथ-साथ गांव वालों का भी दिल जीत लिया। उनकी कोशीशेऔर पढ़ाने के जज्बे से प्रभावित होकर गांव वालों ने भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने में कोताही नहीं बरती, जिसके चलते बीते महीने में पेद्दाकवाली में संचालित प्राईमरी और मिडिल स्कूल में बच्चोंकी उपस्थिति बनी रही। पेद्दाकवाली और चिन्नाकवाली ये गांव जिला मुख्यालय से करीब 15 से 20 किमी दूर बसे हैं।

भोपालपटनम नेषनल हाईवे से चिन्नाकोडेपाल मार्ग पर आगे बढ़ते हुए पड़ाव में ये गांव आते हैं। यह समूचा इलाका नक्सलियों के प्रभाव में है। तीन माह पूर्व चिंगार बहार नाले के समीप दिन-दहाड़े नक्सलियों ने वाहनों में आगजनी के अलावा एक शख्स की हत्या भी कर दी थी। इसी नाले पर पुल का काम चल रहा था और नक्सली इसी बात से खफा थे।
घटना के बाद काम तो रूक गया, नतीजतन शिक्षकों के सामने स्कूल पहुंचने की
चुनौती थी। यकीनन शिक्षकों के इस जिद ने शिक्षा के व्यवसायीकरण के इस दौर
में यह एक आदर्श है।

बच्चों का भविष्य सवरें इसीलिए जोखिम उठाते हैं:-

चिन्नाकवाली में पदस्थ शिक्षिका उर्मिला लकड़ा कहती है कि बच्चों से लगाव उन्हें चुनौती को पार करने का हौसला देता है। कई दफा पानी कमर के उपर होता है फिर भी तमाम मुश्किलातों के बाद भी जैसे-तैसे हम स्कूल पहुंचते है ताकि बच्चों की पढ़ाई में किसी तरह का व्यवधान उत्पन्न ना हो। शिक्षक एसके अल्लूर के अनुसार बरसात में पहाड़ी नाले में बहाव तेज होता है, चूंकि स्कूल पहुंचना जरूरी है, लिहाजा तमाम जोखिम के बाद भी परिस्थितियों के आगे डिगते नहीं। ऐसा कई बार हुआ कि नाले को पार करते वक्त बहाव में कई शिक्षक बहे, हादसों के बाद भी आगे बढ़ते रहे। पेद्दाकवाली में पदस्थ सम्मैया गुरला बताते हैं कि उनके साथ ऐसा दफा हुआ जब पानी थोड़ा कम रहा और वे नदी को पार कर स्कूल पहुंच गए, लेकिन वापसीमें अचानक पानी बढ़ा हुआ मिला। मजबूरी में पूरी रात नदी किनारे बैठकर पानीउतरने का इंतजार करना पड़ा।

आदिवासी बच्चों को मुकाम तक पहुँचाना ही एकमात्र लक्ष्य:-

शिक्षक जिन विषम परिस्थितियों में पहुंचकर पढ़ा रहे हैं,यह देख बच्चे भी प्रभावित है। ना सिर्फ वे उनके दिल से सम्मान करते हैं बल्कि शिक्षकों के हौसले और जज्बे को जीवन का आदर्श मानकर चल रहे हैं। बच्चों के लिए गुरू दक्षिणा यही है कि वे आगे एक सफल इंसान बनेंगे।

दिनेश के.जी. (संपादक)

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