यमुना का सागर में विलीन होना – सतेन्द्र के.जी.

पिछले कई सालों से किसी फिल्म की समीक्षा लिखने को सोचता रहा हूं। पर हाल के दिनों में ने किसी चलचित्र ने इतना प्रभावित नहीं किया कि कलम कागज लेकर बैठ जाऊं। आज यूं ही….।
यूं तो किसी रचना का आप पर प्रभाव उस समय की आपकी मानसिक स्थिति और भौतिक -मनोवैज्ञानिक कारकों का होता है। जाहिर है कि कोई अपनी प्रेमिका के साथ थिएटर में बैठे किसी सामाजिक सोद्देश्यता वाली गंभीर फिल्म नहीं देखना चाहेगा, ना ही कोई दिन भर का थका व्यक्ति विशेष चिंतन, विशेष मनन वाली फिल्मों पर अपना दिमाग खपाना चाहेगा।

किसी साहित्य, संगीत अथवा सिनेमा को देखने समझने के लिए दूसरा महत्वपूर्ण कारक व्यक्ति का उम्र और तजुर्बा होता है। एक बच्चा किसी कार्टून में अपना बचपन ढूंढने की कोशिश करता है तो वहीं एक किशोर अपने कमसिन उम्र में नृत्य,संगीत, अभिनेता,अभिनेत्री के प्रभाव में सिनेमा मे डूबता है। जैसे-जैसे आप वयस्क होते जाते हैं आपके सिनेमा का दर्शन अभिनेता नेत्रियों से हटकर डायरेक्टर या स्क्रिप्ट राइटर की तरफ मुड़ जाता है। यह रवि जाधव की फिल्म है।

भारतीय सिनेमा में यूं भी स्त्री प्रधान फिल्में कम ही बनती हैं, बालिवुडनुमा मसालेदार फिल्मों में स्त्री का पात्र अंग प्रदर्शन, नाचने गाने, और नायक की कहानी में सहायिका की भूमिका में ही होती है। एक अनछुए विषय पर इस फिल्म का महत्व और बढ जाता है। न्यूड के साथ कुछ कांट्रोवर्सी भी जुडी हैं। कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ ने रवि जाधव पर अपनी कहानी ‘कालिंदी’ चुराने का आरोप भी लगाया है। कुछ जगह इसके प्रदर्शन का विरोध भी हुआ है।न्यूड मूलतः मराठी फिल्म है जिसे हिंदी में अनुवाद कर प्रदर्शित किया गया है। यह एक मां के अपने बच्चे की शिक्षा, रोजगार, और कला के संघर्ष की कहानी है। अपने गृहस्थ जीवन के ताने-बाने से विद्रोह कर जमुना अपने बच्चे के साथ मुंबई चली जाती है। हमारे पितृसत्तात्मक में एक युवा स्त्री के रोजगार के अवसर न्यूनतम है और असुरक्षा है सो अलग। फिल्म भी इतने विविध विषयों को उठाती है कि हर विषय पर एक पृथक कहानी फिर बन जाए।

फिल्म की शुरुआत होती है, यमुना(कल्यानी मुले) कपड़े धोती हुई कुछ सोचती मुस्कुराती शायद सारे बंधनों से आजाद होकर यमुना नदी की तरह विशाल ,उन्मुक्त ,स्वच्छंद होना चाहती हो। पूरी फिल्म के बैकग्राउंड में तंबूरे का संगीत कहानी के साथ साथ बहता है । अगले दृश्य में घरेलू हिंसा से विह्वल यमुना बच्चे की पढाई के लिए विद्रोह कर मुंबई चली जाती है।

यमुना के रोजगार पाने की जद्दोजहद में है मुंबई का जेजे आर्ट्स कॉलेज। यहां के छात्र कला के विभिन्न आयामों स्केचिंग, पेंटिंग, मोल्डिंग सीखते हैं। किसी रचनात्मकता को मूर्त करने को एक प्रेरणा की आवश्यकता होती है। कोई शायर अपनी प्रेयसी को कल्पना कर ही भावों को शाब्दिक रूप दे पाता है , कोई साहित्यकार अथवा फिल्मकार अपने पात्रों में स्वयं को उजागर करता है ठीक उसी तरह एक चित्रकार अपनी प्रेरणा किसी जीवंत व्यक्ति, वस्तु में ढूंढता है। जेजे कॉलेज में यथार्थवादी कला सीखने को, शरीर की एनाटॉमी, आकार और आयाम समझने को न्यूड मा़डल की तस्वीर उकेरी जाती है। यहां का वातावरण एक स्वस्थ विचारधारा वाला है। यहां न्यूड मॉडल के रूप में दैनिक रोजी पर काम करती है जमुना की मौसी। समाज में कुछ कार्य निकृष्ट माने जाते हैं कुछ नैतिक बंदिशें भी हैं। स्त्री की देह कुछ के लिए वासना, कामुकता, जुगुप्सा, घृणा है तो कुछ के लिए प्रेरणा भी।

जमुना आखिरकार अपनी मौसी के पेंटिंग स्कूल में न्यूड पोज देने की बात जान जाती है। किसी निम्न मध्यम वर्ग की अनपढ़ भारतीय महिला के लिए यह समझना मुश्किल है कि नंगा होना किसी की शिक्षा के लिए जरूरी कैसे हैं? न्यूड मॉडल की बात जमुना घृणा से भर जाती है और उसे उसके व्यवसाय पर कोसती भी है। जमुना सवाल करती है ‌‌’क्यों बनाते हैं ऐसी औरतों की नंगी तस्वीरें, स्कूल है ना वो?’ यहां का दृश्य बेहद जीवंत और मार्मिक बन पड़ा है जब मौसी कहती है ” इस दुनिया में गरीब औरत कपड़े पहन कर भी सबको नंगी दिखती है”। “वहां हम खुद ही अपना कपड़ा उतारते हैं लेकिन देखने वाला अपना नंगापन नहीं देखता, पढ़ाई का काम है यह उसमें कैसी लाज शर्म”।

पूरी फिल्म की शूटिंग मुंबई की गंदी बस्तियों धारावी जैसे क्षेत्रों में हुई है। यह क्षेत्रीय सिनेमा की प्रयोगधर्मिता है ,रचनात्मकता है। मुख्यधारा का सिनेमा तो वास्तविकता से कोसों दूर चला गया है। फिल्म मे दो सार्थक लोकगीत हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक भी मोह लेता है। आखिरकार बच्चे की पढ़ाई और पेट के सवाल पर जमुना खुद न्यूज़ पोज देने को तैयार हो जाती है। प्रतिदिन ₹300 और 3 दिन के काम में ₹900 मिलने की खुशी को जमुना ने इतना जीवंत दिया है कि आप पैसे की कीमत और अपने फिजूलखर्ची पर शर्मिंदा हो जाते हैं। कई छात्रों के बीच अपने वस्त्र उतारने के शर्म भय घृणा और अपने बेटे की पढ़ाई का द्वंद एक कलाकार और पात्र के बीच के अंतर को भूला देता है।जमुना के काम स्वीकारने के बाद मौसी जमुना के माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी लगाती है और कहती है ” हर वक्त मर्दों की नजर औरतों की छाती पर होती है हमें उस नजर को लाना है यहां, दिस रेड सिगनल, मींस स्टॉप”।

यमुना को पता लगता है कि उसका खुद का बेटा भी स्केचिंग में रुची रखता है। तो जमुना और मौसी उसे बोर्डिंग स्कूल भेज देते हैं ताकि उसे उनके काम का पता न चले वरना वह जिंदगी भर उनसे नफरत करता रहेगा। जमुना कहती है की अगर लाहन्या अच्छा पढ लिख गया तो मेरी न्यूड तस्वीर देखकर भी मेरे पैर छूएगा वरना मुझे चप्पल से मारेगा।इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह ने भी छोटी सी भूमिका अदा की है और कुछ अच्छे डायलॉग नसीर साहब के खाते में आए हैं। नसीर एक बड़े पेंटर हैं संभवतः एम एफ हुसैन को ध्यान में रखकर लेखक ने पात्र गढ़ा है। याद करें हुसैन की न्यूड पेंटिग्स और देशनिकाला। न्यूड स्केचिंग बनाते हुए नसीर कहते हैं” हर इंसान में खुदा होता है और खुदा में इंसान, मुसव्विर इन दोनों से परे जाकर कुछ खोजने की जुर्रत करता है। जमुना के सवाल पर कि आप ऐसे नंगी पेंटिंग क्यों बनाते हैं? नसीर करते हैं कि ” मैंने घोड़ों के, चिड़ियों के, प्रकृति के कई चित्र बनाये पर किसी ने मुझसे ऐसा सवाल नहीं किया। कपड़ा जिस्म पर पहनाया जाता है आत्मा पर नहीं मुझे रूह की तलाश है मैं अपने काम में रूह की तलाश करता हूं।”
जैसे जैसे दुनिया आगे बढ रही है कला की स्वतंत्रता खो रही है।
अगले दृश्य में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर कुछ लोग न्यूड पेंटिंग्स के विरोध में कॉलेज में आकर तोड़फोड़ करते हैं। तथाकथित समाज रक्षक पेंटिंग्स पर कालिक पोतते हैं पेंटर नसीर पर अटैक करते हैं । कला हमेशा मोरल पुलिसिंग द्वारा कुचली जाती रही है। इन सबसे आवक, अचंभित जमुना तब भी कहती है कि यह पढ़ाई का काम है नही रुकना चाहिए।आगे कुछ सालों बाद कहानी है जब लाहन्या घर लौटता है। उसे अपनी मां के काम के बारे में संदेह है। उसकी पढ़ाई के कुछ साल बाकी हैं पर अब वह पेंटिंग घृणा करने लगा है, वह पैसे कमाना चाहता है ,खाड़ी देशों में काम करना चाहता है, कोसता है कि कला की सेवा करना गरीबी में मरना है। मां के विरोध करने पर वह उसी के चरित्र पर सवाल करता है ” मरती है या मजे मारती है? सिर्फ झाड़ू पोछे से कोई इतने पैसे नही कमाता है? रंडी”। लाहन्या घर से निकल जाता है,मौसी जमुना से माफी मांगती है।कॉलेज में एक नई लड़की न्यूड का काम करने को आती है, सब परिस्थितियों को झेलने के बाद भी जमुना का कहती है कि यह पढ़ाई का काम है और यह हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा? इसके बाद जमुना आखरी बार काम करने की बात करती है। कुछ दृश्यों में डायरेक्टर में आत्मीयता, लगाव, विश्वास और प्रेम के भाव को सतह से परे रखा है जो जैसे जमुना और एक छात्र जो अब प्रोफेसर है, का रिश्ता।

अगले दृश्य में समंदर का किनारे छात्र (प्रोफेसर) और जमुना खडे हैं । घिरी जमुना कहती है की बच्चे को पढाने की खातिर यह काम शुरू किया लेकिन वह भी छोड गया अगर कल उसे कुछ हो गया तो कौन देखने आने वाला है? इंसान को केवल पैसे के पीछे नहीं भागना चाहिए इंसान को नाम और पैसे दोनों कमाने चाहिए। प्रोफेसर चाय लेने जाते हैं , अपराधबोध और असुरक्षा से घिरी यमुना सागर को देखते देखते उसी में विलीन हो जाती है।उपसंहार वाले दृश्य में कुछ सालों बाद प्रोफेसर का पेंटिंग एग्जिबिशन लगा है , मजदूर लाहन्या वहां दाखिल होता है, दीवाल पर लगी चित्रों में नग्न चित्रों में उसे कामुकता दिखाई देती है उसका हाथ अपने पेंट के ज़िप पर जाता है…. कैमरे का फोकस धीरे धीरे पेंटिंग की चेहरे की ओर होता है…!!

भारतीय सिनेमा में यूं भी साहसिक फिल्में कम ही बनती हैं। आधुनिक वर्तमान दौर में हमने सिनेमा के लिए बहुत ही हल्की व साधारण परिभाषा कर ली है इंटरटेनमेंट इंटरटेनमेंट और इंटरटेनमेंट। लेकिन इसके गहरे सामाजिक मनोवैज्ञानिक मानविकी प्रभाव को दरकिनार किया है फिर भी यह भारतीय फिल्म इंडस्ट्री क्षेत्रीय सिनेमा की विविधता और विशेषता है की एक फिल्मकार आर्थिक नफे नुकसान से परे अभिव्यक्ति के ऐसे विषय भी चुन लिया करता है जो आपके जहन में ताउम्र प्रभाव छोड़ जाता है। फिल्म पे सेंसर बोर्ड ने एक भी कट नही किया है। कहानी का भाव समझना आपकी बौध्दिक क्षमता पे निर्भर करता है। जरूर देखें।
” This body is a magnificent tamboora”

दिनेश के.जी. (संपादक)

सिर्फ खबरें लगाना हमारा मक़सद नहीं, कोशिश रहती है कि पाठकों के सरोकार की खबरें न छूटें..

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One thought on “यमुना का सागर में विलीन होना – सतेन्द्र के.जी.

  1. Thanks for sharing your ideas. I would also like to say that video games have been actually evolving. Modern tools and inventions have aided create sensible and interactive games. All these entertainment video games were not that sensible when the real concept was first of all being tried. Just like other designs of know-how, video games way too have had to advance by many ages. This itself is testimony to the fast progression of video games.

  2. I’ve come across that these days, more and more people are increasingly being attracted to video cameras and the industry of digital photography. However, to be a photographer, you have to first commit so much time frame deciding the model of dslr camera to buy plus moving via store to store just so you could possibly buy the cheapest camera of the trademark you have decided to select. But it isn’t going to end at this time there. You also have to consider whether you should purchase a digital photographic camera extended warranty. Thanks a lot for the good points I received from your blog site.

  3. Excellent read, I just passed this onto a colleague who was doing some research on that.And he actually bought me lunch because I found it for himsmile Thus let me rephrase that: Thanks for lunch!Look into my blog post; USlim X Keto

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