जगदलपुर। इंद्रावती विकास प्राधिकरण के गठन के बाद लगातार इंद्रावती को बचाने के लिए प्रयास शुरू हुए हैं। बस्तर की जीवनदायनी इंद्रावती के गिरते जलस्तर को बचाने के लिए स्थानीय लोगों ने इंद्रावती बचाओ अभियान की शुरूआत की थी। अब जब इंद्रावती विकास प्राधिकरण का गठन और नियुक्तियों का काम पूरा हो गया है। ऐसे में समस्या और समाधान को जानने के लिए शनिवार को बस्तर चेंबर ऑफ कामर्स भवन में अभियान के सदस्यों और विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। करीब दो घंटे से ज्यादा देर तक चली इस बैठक में कई सुझाव आये और इंद्रावती के जलस्तर के गिरने के कारण भी सामने आये। बैठक में प्राधिकरण उपाध्यक्ष राजीव शर्मा ने सभी सदस्यों की बातों और अभियान की ओर से बातये गये समस्या और समाधानों को सुना। इसके बाद उन्होंने कहा कि अभियान के सदस्यों की ओर से दी गई जानकारियों को लेकर वे एक्सपर्ट से बात करेंगे। इसके अलावा भी अन्य लोगों से सुझाव लेंगे इसके बाद समस्या के समाधान के लिए एक ठोस पहल की जायेगी। बस्तर में यह पहला मौका था जब किसी समस्या पर शासन-प्रशासन के साथ आम नागरिक चर्चा के लिए बैठे हों और उनकी बातों को गंभीरता से लेकर समाधान का प्रयास किया जा रहा हो।
बलीराम, महेंद्र कर्मा के बाद राजीव जुझारू नेता
बैठक में अभियान के सदस्यों ने अपने-अपने विचार भी रखे बैठक में अभियान के विरष्ठ सदस्य संतोष जैन, पुखराज बोथरा व अन्य ने कहा कि बस्तर के हितों के लिए पूरी दमदारी से स्व बलीराम कश्यप, महेंद्र कर्मा लड़ाई लड़ते थे उनमें एक जुझारूपन था। आज वही दमदारी व जुझारूपन प्राधिकरण उपाध्यक्ष राजीव शर्मा में नजर आता है और उम्मीद है कि राजीव इस बड़ी समस्या का समाधान कर लेंगे। बैठक में अभियान चेंबर अध्यक्ष मनीष शर्मा, अभियान के सदस्य किशोर पारख, अनिल लुंकड़, संपत्त झा, उर्मिला आचार्य सहित अन्य लोग मौजूद थे। गौरतलब है कि प्राधिकरण के अध्यक्ष सीएम भूपेश बघेल स्वयं हैं और उपाध्यक्ष राजीव शर्मा को बनाया गया है। इससे पहले दलपत सागर के सौंदर्यीकरण सहित कई अन्य मामलों में राजीव शर्मा के द्वारा किये गये कामों में सफलता मिली है। ऐसे में लोगों को उम्मीद है कि इंद्रावती की समस्या का समाधान भी जल्द होगा।
बैठक में यह समस्याएं निकलकर आई सामने
– छत्तीसगढ़ के अंदर बहने वाली इंद्रावती जगदलपुर तक करीब 18 किमी दूरी तक ऐसी व्यवस्था ही नहीं कि जल की मात्रा मापी जा सके जबकि समझौते के अनुसार 45 टीएमसी पानी छत्तीसगढ़ को मिलना चाहिये।
– इंद्रावती में जल संकट का बड़ा कारण जोरा नाला है पहले जोरा नाला इंद्रावती में मिलता था लेकिन अब इंद्रावती जोरा नाला में मिल गई है यहां पानी का प्रवाह बेहद कम हो गया।
– जोरा नाला में छत्तीसगढ़ ने ओड़िशा के साथ अनुबंध कर 49 करोड़ रूपये खर्च कर स्ट्रक्चर का निर्माण किया। यह स्ट्रक्चर पानी के बंटवारे के लिए बनाया गया था लेकिन अनुबंध में स्ट्रक्चर की देखरेख कौन करेगा इसका उल्लेख ही नहीं था। इसके चलते स्ट्रक्चर के पास धीरे-धीरे रेत जमा होने लगी और अब यहां रेत का टीला बन गया है। रेत के टीले इंद्रावती में आने वाले पानी को रोक रहे हैं।
– इंद्रावती नदी में हर साल करीब 291 टीएमसी पानी का प्रवाह होता है इसमें से सिर्फ 11 टीएमसी पानी का उपयोग ही छत्तीसगढ़ कर पाता है बाकि पानी करीब 280 टीएमसी गोदवारी में बहकर चला जाता है। जल संरक्षित नहीं होने से भी इंद्रावती नदी में बहाव कम हो जाता है और किसानाें व सभी को परेशानी उठानी पड़ती है।
– 1975 में ओड़िशा और तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के बीच जो समझौत हुआ था उसके अंतर्गत खातीगुड़ा डेम में जमा पानी का उपयोग दोनों राज्यों को करना था लेकिन षड़यंत्रपूर्वक ओड़िशा सरकार पानी का ज्यादातर उपयोग कालाहांडी क्षेत्र में कर रही है।
इंद्रावती में जल प्रवाह बना रहे इसके लिए ये सुझाव दिये
– 1975 में दोनों राज्यों के बीच हुए समझौते और 1979 को हुए समझौते की समीक्षा फिर से की जाये। इसके अलावा एक नया समझौता तैयार किया जाये। उस समय हुए समझौता तत्कालीन परिस्थितियों को लेकर थे वर्तमान में परिस्थितियों में बदलाव हुआ है। उस दौरान जब समझौता हुआ था तक जोरा नाला के पस उत्तपन्न समस्या नहीं थी अब यह बड़ी समस्या है।
– जोरानाला पर बने स्ट्रक्चर की निगरानी के लिए दोनों राज्यों के मध्य एक करार हो जिसमें स्ट्रक्चर के रखरखाव, निगरानी, रेत आदि हटाने के संबंध में स्पष्ट उल्लेख हो।
– छत्तीसगढ़ ओड़िशा सीमा पर भेजापदर पर सीडब्लूसी गेज साइट बनाये ताकि छत्तीसगढ़ को कितना पानी मिल रहा है इसकी रिपोर्टिंग बिना किसी आरोप प्रत्यारोप के सीडब्लूसी कर सके।
– छत्तीसगढ में बस्तर जिले में इंदावती जितने भाग से बहकर निकलती है उतने स्थान पर कहीं भी जल संचय के लिए कोई उपाय नहीं किए गये हैं कुछ स्थान पर एनीकेट बनाये गये हैं ऐसे में जल का लाभ 12 महीने मिले इसके लिए चित्रकोट देउरगांव के मध्य बैराज बनाये जायें और इसका काम तत्काल शुरू करवाया जाये।
– जल संचय के लिए जोगराज जलप्रपात, शरावती, कर्नाटक का अध्यन किया जा सकता है इसे आधार बनाकर काम किया जाये।
– इंद्रावती व सहायक नदियों के किनारे बड़े पौधे सघन रूप से लगाये जायें ताकि मिट्टी का कटाव रूके।