जगदलपुर। “25 मई 2013 झीरम हत्याकांड” बस्तर, छत्तीसगढ़ सहित भारतीय इतिहास का काला दिन। 08 साल पहले आज ही के दिन ‘झीरम’ लाल हुआ था। वो मंजर याद कर सिहरन होने लगती है। छत्तीसगढ़ में तीन दशकों से पसरे लाल आतंक का अब तक कोई अंत नहीं हो पाया है। लाल आतंक की हिंसा में राजनीतिक दलों से लेकर सुरक्षा में तैनात जवान आज भी मारे जा रहे हैं। ‘लाल आतंक’ की एक ऐसी हिंसात्मक घटना जिसने छत्तीसगढ़ ही नहीं देश को हिला कर रख दिया था, वो घटना है झीरम घाटी हमले की। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस ने प्रदेश भर में परिवर्तन यात्रा निकाली थी।

झीरम हमले में शहीद दिग्गज नेता

इस दौरान आज ही के दिन माओवादियों ने ऐसा खूनी खेल खेला, जिसमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कद्दावर नेता, सुरक्षाकर्मी और आम लोगों सहित करीब 32 लोगों को मौत हो गई थी। बहरहाल इस मामले में कई तरह की जांच आज भी चल रही है। झीरम में हुए माओवादी घटनाक्रम के पीछे साजिश की बातें भी बड़े जोर-शोर से हुईं। आज इस घटनाक्रम को हुए आठ साल हो चुके हैं। अब तक उस घटना से जुड़े मास्टरमाइंड बड़े माओवादी लीडरों की न तो गिरफ्तारी हो सकी, न ही जांच एजेंसियों की कोई रिपोर्ट आई।


प्रत्यक्षदर्शी सर्वाइवर ‘चंद्रभान झाड़ी’ से सुनिए आपबीती..

चंद्रभान झाड़ी (चंदु)

झीरम हमले के दौरान घटनास्थल पर मौजूद श़ख्स ‘चंद्रभान झाड़ी’ ने कहा कि आज भी जब उस मंजर को याद करता हूं, तो मेरी आंखे भर जाती हैं। आंखों के सामने चहेते दिग्गज नेताओं “बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा, नन्दकुमार पटेल, उनके बेटे को माओवादियों ने जंगल की ओर ले जाकर बेरहमी से उनकी हत्या कर दी थी। विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार जी भी गाड़ी में ही गोली लगने से शहीद हो गये। आज भी सपने में उस घटना की तस्वीरें डराती हैं।

देखिए वीडियो..

श्री झाड़ी ने कहा कि स्व. महेन्द्र कर्मा उनके पिता तुल्य थे, जो सुख-दुख में हर तरह से अपना आशीष मुझ पर बनाए रखते थे। बतौर निज सहायक और परिवार के सदस्य के रूप में पूरी तरह से मैं उन पर निर्भर था। अंतिम क्षणों में भी स्व. कर्मा जी मुझसे मेरा हाल पूछते रहे कि “तु ठीक है क्या? डर मत तुझे कुछ नहीं होगा।” इस हृदयविदारक घटना के बाद उनका साया मेरे सर से उठ जाना, व्यक्तिगत् रूप से मेरे लिए एक अपूर्णीय क्षति है। स्व. कर्मा जी एक अद्वितीय शख्सिय़त थे। घटना के दौरान उनका “निर्दोषों को मत मारो, मैं हूं महेन्द्र कर्मा” कहकर नक्सलियों के समक्ष आत्मसमर्पण करना इसका चरितार्थ है। झीरम कांड के आठवीं बरसी पर मैं उन्हें और झीरम शहीदों को हृदयतल से श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं।


कर्मा के राइट हैंड़ माने जाते थे ‘झाड़ी’..

दि बस्तर टाइगर, शहीद महेन्द्र कर्मा

बता दें कि ‘चंद्रभान झाड़ी’ कांग्रेस के कद्दावर नेता व बस्तर टाइगर कहे जाने वाले ‘शहीद महेन्द्र कर्मा’ (तात्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष) के सहयोगी, पारिवारिक सदस्य व राइट हैंड़ के रूप में 1994 से लेकर शहीद महेन्द्र कर्मा की शहादत के अंतिम पलों तक उनके साथ रहे। इस हृदयविदारक घटना में श्री झाड़ी के हाथ में बुलेट लगने से वह बुरी तरह से जख़्मी हो गये थे। लगभग एक घंटे बाद वे कांग्रेस पार्टी के साथियों के साथ दरभा थाना पहुंचे। जहां मौजूद एक चौपहिया वाहन कमांडर की सहायता से सभी महारानी अस्पताल जगदलपुर पहुंचे और यहां प्राथमिक उपचार के बाद वे बेहतर इलाज के लिए एम्बुलेंस में रायपुर के रामकृष्ण हॉस्पिटल निकल पड़े।

शहीद कर्मा के साथ उनकी पत्नी दंतेवाड़ा विधायक ‘देवती कर्मा’ व चंद्रभान झाड़ी

इलाज के लिये वे 06 महीने तक वहां दाखिल रहे। इस दौरान 05 बार श्री झाड़ी की सर्जरी कर पेट व कमर का मांस निकालकर हथेली पर लगाया गया, जहां पेट में 25 टाँके भी लगाए गए थे। जिससे कि उनके बुरी तरह जख़्मी हाथ को ठीक किया जा सके। उपचार के दौरान हर संभव मदद उन्हें सरकार व शुभचिंतको से मिलता रहा। अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद भी श्री झाड़ी लगभग एक साल तक बेड़ रेस्ट पर रहे। इस पूरे रिकवरी के दौरान उनकी पारिवारिक स्थिति अत्यंत दयनीय हो चुकी थी, इन सभी अकाल परिस्थितियों से वे मानसिक तनाव से भी ग्रस्त हो चुके थे। हालातें इतनी विपरीत हो चुकी थीं कि श्री झाड़ी और उनकी पत्नी ने एक दिन आत्महत्या तक की योजना बना ली थी।


 

जहर फैलने के डर से हाथ काटने तक की नौबत आई..

इलाज के दौरान चंद्रभान एवं उनकी पत्नी

गौरतलब है कि झीरम की घटना में एक लौते व्यक्ति ऐसे हैं, जिनका अंगभंग (बांये हाथ से विकलांग) हो चुके हैं। जिससे आज पर्यन्त तक असहनीय दर्द जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है व उपचार की जरूरत पड़ जाती है।


श्रीमति झाड़ी ने बताया कि इलाज के दौरान जहर फैलने के डर से उनके पति के हाथ को काटे जाने का उपाय डॉक्टरों के द्वारा दिया गया था, ये सुनकर उनकी आंखो में आंशु आ गए थे, उन्होंने अपने ज़िद पर हाथ को बिना काटे ही उपचार करने का आग्रह किया। जिस पर डॉक्टरों ने प्रयास भी किया था।

बाएं हाथ से विकलांग हो चुके हैं चंद्रभान

 

बस्तर की घायल भूमि के ये घाव जैसे आज भी हरे हैं..


बस्तर इतिहास के ‘काले दिन’ की यादें आज भी मानों लोगों के जहन में बैठी हैं। हर साल कैलेण्डर के बदलते महीनों के बीच जब मई की 25 तारीख लोगों के जहन में आती है तो आज से आठ साल पहले बस्तर जिले के दरभा इलाके के झीरम घाटी में करीब तीन घंटे तक माओवादियों द्वारा किया गया घटनाक्रम हर किसी को याद आ जाता है। ’25 मई 2013′ इसी दिन दिग्गज कांग्रेस नेता परिवर्तन यात्रा के काफिले को लेकर सुकमा से लौट रहे थे।


इस दौरान एक बड़े घटना को अंजाम देने के लिए बड़ी संख्या में माओवादी इस घाटी में घात लगाए बैठे थे। जैसे ही कांग्रेस का काफिला दरभा के झीरम घाटी में पहुंचा, माओवादियों ने ब्लास्ट के साथ ही ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। इस घटना के दौरान कुछ लोग माओवादियों की गोली लगने से घायल हुए थे, जो आज भी उस भयावह घटनाक्रम को याद कर सिहर उठते हैं। माओवादियों की गोली से घायल बस्तर भूमि के ये घाव जैसे आज भी हरे हैं।

दिनेश के.जी. (संपादक)

सिर्फ खबरें लगाना हमारा मक़सद नहीं, कोशिश रहती है कि पाठकों के सरोकार की खबरें न छूटें..

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By दिनेश के.जी. (संपादक)

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