सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अभिलेखीकरण के लिए ‘बादल’ में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन

आदिवासी रीति रिवाजों के अभिलेखीकरण में सभी का सहयोग जरुरी – लखेश्वर बघेल

जगदलपुर। बस्तर क्षेत्र में निवासरत विभिन्न जनजातीय समुदायों में प्रचलित परंपराओं को सहेजने के लिए आज एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन आसना स्थित बस्तर एकेडमी ऑफ डांस, आर्ट, लिट्रेचर एंड लैंग्वेज में किया गया।

बादल में आयोजित इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल ने कहा कि आदिवासी समाज की अनुठी संस्कृति और परंपराओं को सहेजने के लिए इसके अभिलेखीकरण का कार्य छत्तीसगढ़ शासन की पहल पर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज आयोजित इस कार्यशाला में बहुत से समाज प्रमुख भी पहुंचे हैं, जिन्होंने इन परंपराओं को आगे बढ़ाने का कार्य किया है। तेजी से बदल रहे परिदृश्य में अब इन परंपराओं का अभिलेखीकरण जरुरी है, ताकि यह आगे भी निरंतर बनी रहें। सामाजिक रीति रिवाजों के अभिलेखीकरण का कार्य समाज के लोगों की सहभागिता के बिना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज के रीति-रिवाज और परंपराओं को सहेजने का यह कार्य आजादी के 75वें वर्ष में प्रारंभ किया गया है तथा यह कार्य 75वें वर्षगांठ से पूर्व निश्चित तौर पर पूर्ण कर लिया जाएगा।

संसदीय सचिव रेखचंद जैन ने कहा कि बढ़ते भूमण्डलीकरण के प्रभाव से कई भाषा और बोलियां अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं। ऐसे समय में यहां की जनजातीय परंपराओं को संरक्षित करने के लिए इसके अभिलेखीकरण का सराहनीय कार्य छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इन परंपराओं के अभिलेखीकरण के साथ ही इन परंपराओं को अक्ष्क्षुण रखने का प्रयास भी समाज को करना होगा। उन्होंने कहा कि परंपराओं और रीति रिवाजों के अभिलेखीकरण का कार्य समाज प्रमुखों द्वारा किया जा रहा है, इसलिए यह सबसे अधिक विश्वसनीय अभिलेख होगा। इन अभिलेखों कोे पेटेंट करने की आवश्यकता है। उन्होंने विकास के साथ साथ संस्कृति के संरक्षण को भी आवश्यक बताते हुए गांवों में रहने वाले अन्य समुदाय के सांस्कृतिक परंपराओं के अभिलेखीकरण की आवश्यकता भी बताई। उन्होंने घर के सदस्यों के बीच बातचीत के लिए स्थानीय बोलियों का अधिक से अधिक उपयोग करने का आग्रह किया, जिससे ये बोलियां सदा-सदा के लिए बनी रहें।

कमिश्नर जीआर चुरेन्द्र ने कहा कि बस्तर क्षेत्र में निवासरत विभिन्न जनजातीय परंपराओं और रीति-रिवाजों को सहजने के लिए 19 फरवरी 2020 को आयोजित बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण की बैठक में संकल्प पारित किया गया था। इसी कड़ी में बस्तर जिला प्रशासन द्वारा आसना में बस्तर एकेडमी आॅफ डांस, आर्ट, लिट्रेचर और लैंग्वेज की स्थापना का कार्य अब अंतिम चरण में पहुंच चुका है। इसके साथ ही इस अंचल में रहने वाली माड़िया, मुरिया, भतरा, हल्बा, धुरवा, दोरला सहित विभिन्न जनजातियों सांस्कृतिक परंपराओं और रीति-रिवाजों के अभिलेखीकरण का कार्य समाज प्रमुखों के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।

इस अवसर पर सभी जिलों से आए हुए आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त और विभिन्न समाज के प्रतिनिधियों से अभिलेखीकरण के संबंध में उनके अनुभवों एवं सुझावों को सुना गया। बस्तर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल ने यहां सामुदायिक भवन तथा सांस्कृतिक भवनों की मांग पर शासन द्वारा निर्धारित मापदण्डों के आधार पर शीघ्र स्वीकृति प्रदान करने की घोषणा की। इसके साथ ही कांकेर जिले में रह रहे घुमंतु प्रजाति के पारधी समुदाय के लोगों का सर्वेक्षण करने के निर्देश आयुक्त जीआर चुरेन्द्र द्वारा दिए गए। इस अवसर पर पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष शांति सलाम, उप संभागायुक्त बीएस सिदार सहित विभिन्न समाजों के प्रमुख उपस्थित थे।

दिनेश के.जी. (संपादक)

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