गणेश चतुर्थी के अवसर पर दिनेश के.जी. की स्पेशल रिपोर्ट…
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बैलाडिला पहाड़ी पर लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित ऐतिहासिक गणेश प्रतिमा स्थापित एक मनमोहक स्थल है। माना जाता है कि भगवान गणेश की लगभग साढ़े 3 फीट पत्थर की सुन्दर मूर्ति 10वीं और 11वीं शताब्दी के बीच नागवंश के दौरान बनाई गई थी। यह साइट का मुख्य आकर्षण है। जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से लगभग 25 किमी दूर स्थित, यह जगह प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है, और उन लोगों के लिए जो हरी-भरी पहाड़ियों व वादियों के बीच ट्रेक करना पसंद करते हैं।
काले ग्रेनाइट से बनी है लगभग साढे़ तीन फीट ऊंची प्रतिमा
10वीं-11वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी राजाओं द्वारा दुर्लभ चतुर्भुज गणेश प्रतिमा स्थापित करवाई गई थी। लगभग साढे़ तीन फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी यह प्रतिमा बेहद कलात्मक है। समुद्र तल से इस शिखर की ऊंचाई लगभग 3000 फीट है। इस प्रतिमा को छत्तीसगढ़ के सबसे ऊंचे स्थल में स्थापित होने का गौरव भी प्राप्त है। दंतेवाड़ा से 25 कि.मी. दूर बैलाडीला की सबसे ऊंची पहाड़ी ढोलकाल पर यह दुर्लभ गणेश प्रतिमा विराजमान है। हर वर्ष गणेश चतुर्थी में दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन करने श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
ललितासान में विराजमान हैं गणपति
दक्षिण बस्तर के बैलाडीला की पहाड़ी श्रृंखलाओं में से एक ढोलकाल नामक पहाड़ी की चोटी पर सैकड़ों वर्ष पुरानी गणेश जी की दुर्लभ प्रतिमा स्थित है। इस स्थल की विशेषता यह है कि यहां प्रकृति और प्राचीन समृद्ध संस्कृति का अद्भुत-मेल देखने को मिलता है। लगभग तीन हजार फीट की ऊंचाई पर गणेश जी की यह दुर्लभ प्रतिमा, जो कि ललितासन में विराजमान है।
भगवान गणेश व परशुराम का हुआ था युद्ध
जानकारों व पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान गणेश और परशूराम का युद्ध इसी शिखर पर हुआ था। युद्ध के दौरान परशुराम के फरसे से गणेश का एक दांत टूटा था। इस घटना के बाद छिंदक नागवंशी राजाओं ने शिखर पर गणेश की प्रतिमा स्थापित की। पुरातत्व के अनुसार ढोलकाल शिखर पर स्थापित दुर्लभ गणेश प्रतिमा लगभग 11वीं शताब्दी की है।
शिखर तक पहुंचने के लिए करनी पड़ती है पैदल यात्रा
ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा से करीब 17 किलोमीटर दूर फरसपाल, इसके बाद कोतवाल पारा होकर जामपारा तक पहुंच मार्ग है। ‘जामपारा’ पहाड़ी के नीचे स्थित है। यहां से करीब 5 किमी पैदल चलकर पहाड़ी पगडंडियों से होकर शिखर तक पहुंचना पड़ता है। ग्रामीणों के सहयोग से शिखर तक पहुंचा जा सकता है। दुर्गम रास्ते होने की वजह से ढोलकाल गणेश प्रतिमा तक श्रद्धालु विशेष मौके पर ही पहुंचते हैं।
क्यूँ रखा गया गांव का नाम ‘फरसपाल’
काले ग्रेनाईट पत्थर से निर्मित ललीतासन में गणेश की प्रतिमा करीब एक हजार साल पुरानी है। ऐसी मान्यता है कि इस पहाड़ पर परशुराम व गणेश का युद्ध हुआ था। इस दौरान परशुराम की वार से गणेश का एक दांत टूट गया था, इसलिए इस गांव का नाम फरसपाल रखा गया।
स्थानीय ग्रामीणों ने की थी स्थल की खोज
पुरात्वविदों का मानना है कि इस प्रतिमा की स्थापना छिदंक नागवंशी राजाओं ने कराई थी। इसके इर्द-गिर्द सूर्य व शिव की प्रतिमाएं भी स्थापित थीं, लेकिन वर्तमान में यहां अब अवशेष ही शेष रह गए हैं। ढोलकल शिखर की खोज स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा ही की गयी थी।
कई प्रतिमाएं चढ़ी तस्करों की भेंट
ढोलकल शिखर को लेकर किवदंतियां हैं कि गणेश प्रतिमा के बाजू वाली पहाड़ी पर भगवान शिव की प्रतिमा थी। वहीं कुछ दूर एक और पहाड़ी की शिखर पर सूर्यदेव की प्रतिमा की स्थापना भी 10वीं व 11वीं शताब्दी में कराई गई थी। भगवान शंकर व सूर्यदेव की प्रतिमाएं तस्करों की भेंट चढ़ चुकीं हैं। फिलहाल इन स्थानों मे केवल पत्थरों के अवशेष ही मात्र शेष रह गए हैं।
ज्ञात हो कि दक्षिण बस्तर-दंतेवाड़ा में ऐतिहासिक धरोहरों की कमी नहीं है। संरक्षण व रख-रखाव के अभाव में ऐतिहासिक धरोहर विलुप्त होने की कगार पर हैं। शासन-प्रशासन को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। पर्यटन मंडल को भी इसकी जानकारी है लेकिन पर्याप्त प्रचार व सुविधाओं के अभाव में दक्षिण बस्तर का यह सुंदर स्थल आज भी लोगों की नजर से मानो ओझल ही है।