सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहा तेलंगाना से लगा छत्तीसगढ का यह इलाका, नक्सलवाद की आड़ में शासन-प्रशासन नहीं लेता यहां मौजूद दर्जनों गांवो की कोई सुध

सीजीटाइम्स की स्पेशल रिपोर्ट…

दिनेश के.जी., बीजापुर। जिले के सुदुर क्षेत्रों तक अनवरत वर्षा से हालात बद से बदतर हो गये हैं। इस विषम परिस्थितियों से निपटने के लिए शासन के नुमाइंदों के साथ ही जिला प्रशासन का पूरा अमला सजगता से दायित्वों के निर्वाहन में जुटा रहा, यथासंभव लोगों को मदद करने के लिए तत्पर रहे। प्रशासन ने जरुरतमंदों को मदद करने में कोताही नहीं की, लेकिन जिले का एक ऐसा क्षेत्र भी है जहाँ के लोगों की सुध लेना किसी ने मुनासिब नहीं समझा।

जिले में अनवरत जारी वर्षा से पूरे जिले में नदी, नाले उफान पर थे। इस बाढ़ जैसे आपदा से निपटने के लिए कलेक्टर रितेश अग्रवाल ने पूर्व में ही राजस्व एवं आपदा, स्वास्थ्य आदि विभागों के अधिकारियों को सख्त निर्देश जारी किए। कलेक्टर के आदेश का अधिकारियों ने बखूबी पालन किया। बाढ़ के कारण जिले का पर- प्रांत से भी आवागमन बाधित हुआ और हो रहा है। बाढ़ से कई क्षेत्र टापू बन गये, किसानों की खड़ी फसल बर्बाद हो गयी। लोगों के मकानों में बाढ़ का पानी घुसा, कुछ कच्चे मकान पानी के कारण ढह गये। ऐसी परिस्थितियों में प्रशासन का पूरा अमला जनता की सेवा में रात दिन लगा है। स्वयं कलेक्टर भी विभिन्न दुर्गम बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का दौराकर जनता की दिक्कतों से रुबरु हो रहे हैं, साथ ही अपने आला-अधिकारियों को जनता की समस्याओं का निराकरण तत्काल करने के निर्देश जारी किए। अपवाद स्वरूप कुछ समस्या से, कुछ अनहोनी घटनाएं भी घटी। प्राकृतिक आपदा के आगे सब नतमस्तक हो जाता है। इस दौरान बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में विधायक विक्रम मंडावी व विपक्ष के नेता पूर्व मंत्री महेश गागड़ा ने भी विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर जनता की समस्याओं से रुबरु हुए व राहत सामग्री प्रदान की। जनता को होने वाली कठिनाइयों से प्रशासनिक अधिकारी को अवगत कराया और तत्काल निराकरण करने हेतु निर्देशित किया।

भारी वर्षा से हालात बद से बदतर, खेत हुए जलमग्न तो किसानों की कई एकड कडी फसल पूरी तरह बर्बाद

जिले के अंतिम छोर पर बसे कोत्तापल्ली व पामेड़ भी बारिश में टापू बने रहे किन्तु कथित तौर से पता चला है कि उस क्षेत्र की सुध लेने ना कोई अधिकारी गया और ना ही कोई राजनीतिक दल का नेता। बता दें कि सामान्य दिनों में पामेंड़ की सुध लेने अधिकारी या कोई राजनीतिक दल बहुत-कम ही पहुंचते हैं, ऐसी आपदाओं को दौरान कोई नहीं पहुंचता, रही बात कोत्तापल्ली कि तो वहां पर उस क्षेत्र की सुध लेने न कोई अधिकारी जाता है और ना ही कोई राजनीतिक दल का नेता। चाहे गर्मी हो या बारसात, उस क्षेत्र की जनता का दुख-सुख जानने कोई नहीं पहुंचता। लगभग दो सप्ताह से जारी वर्षा से पामेंड़ हो या कोत्तापल्ली, पामेंड़ की चिंतावागु का जलस्तर अचानक बढ़ जाने से पूरे खेत जलमग्न हो गये। जिससे कोत्तापल्ली समेत पामेंड़ के कई एकड किसानों की कड़ी फसल पूरी बर्बाद हो गयी।

जिले में ज्यादातर गांव ऐसे हैं जहां सड़क नहीं है। जिसकी वजह नक्सलवाद को माना जाता है। लेकिन नक्सलवाद की आड़ में सरकारें कब तक अपनी नाकामी को छुपाती रहेंगी। आजादी के 70 साल बाद सड़कें बनती है तो महीनेभर में ही उखड़ने लगती है। सड़कें नहीं होने का खामियाजा छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के सुदूर अंचलों में रहने वाले आदिवासियों को भुगतना पड़ता है। स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में दशकों से हजारो, लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई है। नदी, नाले और बाढ़ की वजह से स्वास्थ्य महकमा भी गंभीर मरीज के गांव तक सूचना के बाद भी नहीं पहुंच पाता है।

सड़क निर्माण का है क्षेत्रवासियों को इंतजार

तेलंगाना एवं छग राज्य के सीमावर्ती माओवादी प्रभावित दंडकारण्य क्षेत्र कोत्तापल्ली पहुंच मार्ग के लिए केंद्र सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय रोड निर्माण कार्य के लिए 06 करोड़ रुपए की मंजूरी दी। यह सड़क तेलंगाना के वेंकटापुरम मंडलं मुलूगू जिला विजयपुरी कॉलोनी से छग के लिए है, जो बीजापुर जिले की उसूर ब्लॅाक की सीमावर्ती अतिसंवेदनशील माओवाद प्रभावित क्षेत्र कोत्तापल्ली पहुंच मार्ग 08 कि.मी.अंतर्राष्ट्रीय डबल रोड के लिए केंद्र सरकार ने 06 करोड़ रुपए की निधी मंजूरी दी है। केंद्र सरकार से तेलंगाना सरकार को तेलंगाना सीमा से 08 किमी. दूर कोत्तापल्ली पहुंच मार्ग के लिए मंजूरी मिली है। अब छग सीमा से कोत्तापल्ली पहुंच मार्ग छग सरकार कितने साल बाद बना पाती है अब देखना होगा!

आपको बता दें कि यह सड़क 15 साल पहले आवापल्ली उसूर ब्लाक मुख्यालय से नंबी, पुजारी कांकेर, कोत्तापल्ली से होते हुए सीधा तेलंगाना को जोड़ने वाली मुख्य सड़क है। इस सड़क पर 15 वर्ष पहले बसें, ट्रैक्टर जैसी वाहनें चला करती थीं। सलवा जुडूम के बाद से यह सड़क पुरी तरह बंद हो गया है और वही सड़क अब पगडंडी में तब्दील हो चुकी है। लोगों को आने-जाने में काफी परेशानियों को सामना करना पड़ता है। अक्सर बारिश के दिनों में नदी-नाले उफान पर होते हैं, इसलिए बारिश में कुछ दिन आवाजाही बंद होती है।

सड़क बन सकती है विकास की बुनियाद

जिले के कई ऐसे अंदरूनी गांव हैं, जहां तक न ही सड़क है न बिजली। कई सरकारें आईं और गयीं लेकिन इन अंदरूनी इलाकों में आज तक कोई विकास नहीं हुआ। सड़क ही गांव के विकास की बुनियाद होती है। सड़क मार्ग नहीं होने के कारण एंबुलेंस, मातहारी वाहन जैसी आपातक़ालीन वाहनें गांवों तक नहीं पहुंच पाती, यही कारण है कि अंदरूनी इलाकों के ग्रामीण स्वास्थ्य संबंधि गंभीर मामलों पर देशी एंबुलेंस “चारपाई” में मरीज को लादकर स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचने को मजबूर हो जाते हैं।

बीजापुर जिले के उसूर ब्लाक के ऐसे दर्जनों सीमावर्ती गांव हैं जो आज भी पड़ोसी राज्य तेलंगाना के भरोसे हैं, जिनमें कोत्तापल्ली, भीमाराम, कस्तूरपहाड, चिन्ना उटलापल्ली, पेद्दा उटलापल्ली, मलेंपेंटा, रामपुरम, पुजारी कांकेर सहित कई गांंव पामेंड़ क्षेत्र के भी शामिल हैं। जिन्हें छत्तीसगढ़ शासन की योजनाओं का पुर्ण रूप से लाभ नहीं मिल पाता है।

रोज़मर्रा की जरूरतों के लिए भी तेलंगाना पर आश्रित हैं ये गांव

कोत्तापल्ली वासियों को रोजमर्रा के समान व किराना समान तेलंगाना के वेंकटापुरम, चर्ला, आलबाका आदि गांवों के हाट बाजार से लेकर आना पड़ता है। कोत्तापल्ली से तेलंगाना की दुरी लगभग 12-15किमी. की है जो कि अत्यधिक जर्जर एवं कीचड नुमा, फिसलन भरी एवं पथरीली सड़क है। खासकर बरसात के मौसम में मोटरसाइकिल जैसी वाहनों को अत्यधिक फिसलन की वजह से दुर्घटनाओं का सामना भी करना पड़ जाता है। बावजूद इसके नये यात्रियों को कोत्तापल्ली के पहाड़ों का मनोरम दृश्य को देख कर आकर्षित हो जाते हैं। इन सुदुर अंचलों में प्रकृति और आदिवासी संस्कृति का अद्भुत मेल देखने को मिलता है।

नक्सलवाद की आड़ में नेता, अधिकारी नहीं लेते यहां मौजूद दर्जनो गांवो की सुध

बड़ा सवाल है कि जिस तरह पामेंड़ से तेलंगाना तक पहुंच मार्ग सरकार ने बनाया है, क्या उसी तरह कोत्तापल्ली से तेलंगाना तक पहुंच मार्ग नहीं बनाया सकता? जिस प्रकार तेलंगाना से पामेड़ के लिए बिजली लाई गई, पामेंड़ को विकास के पथ पर आगे बढ़ाया जा रहा, क्या उसी प्रकार कोत्तापल्ली को भी विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता? छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती पामेंड़ जैसे कई गांव हैं जो आज़ाद भारत के सात दशक बाद भी विकास से कोशों दूर ही हैं। कई सरकारें आईं और गईं पर आज भी यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाओं का लाभ तक नहीं मिल सका।

दिनेश के.जी. (संपादक)

सिर्फ खबरें लगाना हमारा मक़सद नहीं, कोशिश रहती है कि पाठकों के सरोकार की खबरें न छूटें..

Dinesh KG
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