विशाल आदिवासी समृद्ध संस्कृतियों के संरक्षण हेतु अभिलेखीकरण पर बैठक में हुई चर्चा

आदिवासी संस्कृति का संरक्षण-संवर्धन करना हम सब की जवाबदारी – लखेश्वर बघेल

जगदलपुर। बस्तर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल ने कहा कि आदिवासी समाज की संस्कृति का संरक्षण-संवर्धन करना हम सब लोगों की जवाबदारी है। प्राधिकरण का गठन बस्तर क्षेत्र के विकास हेतु किया गया है। इसमें सांस्कृतिक-पुरातात्विक धरोहरों का संरक्षण-संवर्धन का कार्य किया जाना है। बस्तर संभाग में जनजाति बाहुल्य जनसंख्या निवास करती हैं। क्षेत्र में आदिवासी की 44 जाति है जिन पर कई लेखकों ने उनकी संस्कृति, त्यौहार, भाषा-बोली, गीत-संगीत, लोक नृत्य आदि विषयों पर कई लेख लिखे है उन धरोहरों को संरक्षित करने का कार्य प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा। श्री बघेल सोमवार को कमिश्नर कार्यालय के सभाकक्ष में संभाग के सभी जिलों से आदिवासी संस्कृति से संबंधित साहित्यकार, काव्य रचनाकार, आदिवासी संस्कृति के संरक्षक व सामाजिक प्रतिनिधियों से आदिवासी समृद्ध संस्कृतियों के संरक्षण हेतु अभिलेखीकरण के लिए बैठक में चर्चा कर रहे थे।

श्री बघेल ने कहा कि आदिवासी संस्कृति, परम्परा को संरक्षित करने के लिए जिला स्तर में सामाजिक नीति-रीति के संबंध में बैठक करने की जरूरत है। जिससे इसके जानकार लोगों की सुझाव मिल सके। इस संभाग स्तरीय बैठक में विभिन्न विषय-विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सुझाव पर अगामी दिनों में कार्य किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि स्थानीय बोली में छपी पुस्तकें, आदिवासी संस्कृति से संबंधित पुस्तकों को अध्ययन हेतु जिला व ब्लाॅक स्तर पर रखा जाएगा। अपनी संस्कृति का पहचान को आगे ले जाने के लिए नए जनरेशन को अवगत कराना होगा और संस्कृति का संरक्षण-संवर्धन करना होगा।

बस्तर संभाग की सांस्कृतिक, विभिन्न पर्यटन स्थल व पर्यावरण क्षेत्र में अलग पहचान है – विक्रम मण्ड़ावी

बस्तर प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ‘विक्रम मण्ड़ावी’ ने कहा कि बस्तर संभाग सांस्कृतिक, विभिन्न पर्यटन स्थल व पर्यावरण क्षेत्र के रूप में अलग पहचान बनाएं हुए है। बस्तर की यह पहचान कुछ क्षेत्र तक ही सीमित नहीं होना चाहिए आदिवासी संस्कृति अपने आप में समृद्ध है। इसकी जानकारी देने के लिए एक माध्यम होना आवश्यक है जो कि बस्तर क्षेत्र के संस्कृति, त्यौहारों, लोक-नृत्य, गीत, भाषा-बोली व सामाजिक परम्पराओं को बताए। आदिवासी संस्कृति के संरक्षण-संवर्धन हेतु प्राधिकरण के माध्यम से बैठक किया इसी प्रकार जिला स्तर पर भी बैठक करने की जरूरत है। श्री मण्ड़ावी ने बैठक में बस्तर संभाग के प्रवेश स्थलों पर सांस्कृतिक पहचान दिलाने वाले प्रवेश द्वार बनाने की प्रस्ताव दिए। बस्तर की समृद्ध संस्कृति से नए जनरेशन को जोड़ने लिए स्कूलों और काॅलेजों में संस्कृति से संबंधित पुस्तकों की उपलब्ध कराने कहा। साथ ही मेला, बाजार में जन भागीदारी अधिक होती है इन जगहों में सांस्कृतिक प्रचार-प्रसार भी का कार्य किया जाए।

इस अवसर पर कमिश्नर अमृत कुमार खलखो ने कहा कि बस्तर संभाग में केशकाल घाटी के ऊपर से एक अलग संस्कृति भाषा-बोली, रहन-सहन का अनुभव किया जा सकता है। इस क्षेत्र की संस्कृति को समझना हो तो बस्तर के साप्ताहिक बाजार का अवलोकन करना चाहिए। मुख्यमंत्री के द्वारा बस्तर क्षेत्र के विकास आदिवासी संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु संग्रहालय निर्माण की अनुमति दी गई। परीचर्चा में डिप्टी कलेक्टर बीएस सिदार, सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, बस्तर, दन्तेवाड़ा, कोण्डागांव, कांकेर जिलों के सहायक आयुक्त व आदिवासी संस्कृति और सामाजिक प्रबुद्ध जन उपस्थित थे। सातों जिलों से आए हुए आदिवासी संस्कृति से संबंधित साहित्यकार, काव्य रचनाकार, आदिवासी संस्कृति के संरक्षक व सामाजिक क्षेत्र के प्रबुद्ध जन द्वारा आदिवासी समृद्ध संस्कृतियों के संरक्षण हेतु अभिलेखीकरण पर अपने सुझाव प्रस्तुत किया गया।

दिनेश के.जी. (संपादक)

सिर्फ खबरें लगाना हमारा मक़सद नहीं, कोशिश रहती है कि पाठकों के सरोकार की खबरें न छूटें..

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