जगदलपुर। विजय दशमी को भीतर रैनी पर रथ परिक्रमा के बाद रात्रि को चुराई गई रथ की वापसी कुम्हड़ाकोट में नवाखानी के बाद हुई। उल्लेखनीय है कि विश्वप्रसिद्ध बस्तर दशहरा में कोड़ेनार-किलेपाल क्षेत्र के माड़िया जनजाति के युवाओं द्वारा विजय रथ को माता के छत्र के साथ चुराने की परम्परा है, जिसे कुम्हड़ाकोट के जंगल में छुपाया जाता है। मंगलवार को उसी विजय रथ को वापस लेने के लिए आश्विन शुक्ल एकादशी पर राजपरिवार, बस्तर दशहरा समिति, माझी, मुखिया, चालकी, नाइक, पाइक, देवी, देवता कुम्हड़ाकोट के जंगल पूरे लाव-लश्कर के साथ पहुंचे।
यहां विधिवत माता के छत्र की पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर माटी पुजारी श्री कमल चंद्र भंज देव, बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष दीपक बैज, राजपरिवार के सदस्यों ने नए चावल की खीर खाई। इस अवसर पर खीर का वितरण प्रसाद के रूप में किया गया और नवाखानी की रस्म निभाई गई। इसके बाद हर्षोल्लास के साथ विजय रथ के वापसी व बाहर रैनी पूजा विधान पूरी की गई।