गणपति भक्ति से भरी कवयित्री सुषमा प्रेम पटेल की नई रचना ‘देवा गणपति’ को मिला पाठकों का आशीर्वाद

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सुषमा के स्नेहिल सृजन’ में भक्ति का प्रकाश, देवा गणपति कविता को मिली सराहना

सूर छंद में सजी गणेश वंदना, सुषमा प्रेम पटेल की अनोखी प्रस्तुति

रायपुर। छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध कवयित्री सुषमा प्रेम पटेल की नई भक्ति-रस से सराबोर कविता “देवा गणपति” इन दिनों साहित्य प्रेमियों और भक्तजनों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। सूर घनाक्षरी छंद में रचित यह काव्य-रचना भाव, भक्ति और संगीतात्मकता का अनुपम संगम है।

कविता में गणपति बप्पा की स्तुति करते हुए कवयित्री ने जिस कोमल भाव से रिद्धि-सिद्धि, भोग-प्रसाद, और मूषक वाहन का चित्रण किया है, वह पाठकों को सीधे भक्ति भाव से जोड़ देता है।

सुषमा के स्नेहिल सृजन

छंद – सूर घनाक्षरी

देवा गणपति

आश्रय आशीष तेरे, देवा गणपति मेरे,
देना प्रभु रिद्धि-सिद्धि,
शिव-शिव बोल।

गजानन जी की सेवा, भोग चढ़े घृत मेवा,
‘सुषमा’ सजे हैं थाल,
ज्ञान चक्षु खोल।

मोदक खाने को मिले, मूषक के साथ चले,
मैय्या-मैय्या भूख लगी,
आगे-पीछे डोल।

भवानी नंदन जय, शिवा-शिव जय-जय,
सदा शुभ-शुभ बोलो,
हानि-लाभ तोल।

_कवयित्री सुषमा प्रेम पटेल, रायपुर छ.ग.

उक्त पंक्तियाँ न सिर्फ श्रद्धा से भर देती हैं बल्कि भक्ति को कविता में सजीव कर देती हैं।
यह कविता साहित्य और अध्यात्म का सुंदर मेल है, जिसमें सुषमा जी की लेखनी ने गणपति आराधना को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है।

“सुषमा के स्नेहिल सृजन” श्रृंखला की यह भक्ति-कविता सोशल मीडिया पर भी खूब सराही जा रही है और गणेश भक्तों के बीच विशेष रूप से साझा की जा रही है।
यह रचना ये प्रमाणित करती है कि जब साहित्य में भक्ति का भाव घुलता है, तो शब्द भी आरती बन जाते हैं।

दिनेश के.जी. (संपादक)

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