जगदलपुर। बस्तर दशहरा में भीतर रैनी विधान के तहत सोमवार को नवनिर्मित आठ पहियों वाला विजय रथ खींचा गया। देर शाम रथ परिक्रमा प्रारंभ हुआ। यह रथ सिरहासार चैक से प्रारंभ हुआ और मावली मंदिर की परिक्रमा कर रात को दंतेश्वरी मंदिर पहुंचा। वहां से इसे कोड़ेनार-किलेपाल क्षेत्र से आए ग्रामीण खींचकर शहर से करीब तीन किलोमीटर दूर कुम्हड़ाकोट जंगल ले जाएगा। इस परंपरा को रथ चुराना भी कहते हैं। बस्तर दशहरा के करीब 600 साल पुरानी इस परंपरा को देखने श्रद्धालु रथ परिक्रमा मार्ग पर किनारे डटे रहे। बस्तर दशहरा के तहत विजयादशमी के दिन आठ पहियों वाला रथ खींचा गया। इसे विजय रथ कहा जाता है और इस रथ को शहर मध्य चलाने के कारण भीतर रैनी कहा जाता है। शाम को मां दंतेश्वरी का छत्र मावली मंदिर पहुंचा। देवी की आराधना पश्चात मांईजी के छत्र को रथारूढ़ कराया गया। इस मौके पर जिला पुलिस बल के जवानों ने हर्ष फायर कर मां दंतेश्वरी को सलामी दी। केंद्रीय जेल की बैंड पार्टी ने भी लोगों को उत्साहित किया। भीतर रैनी रथ परिक्रमा को देखने लोगों की भीड़ जुटी। जैसे ही रथ टेकरी वाले हनुमान मंदिर पहुंचा परंपरानुसार अतिथियों को बस्तर दशहरा समिति द्वारा पान व रूमाल भेंट किया गया।
“बाहर रैनी” मंगलवार को
बस्तर दशहरा के तहत विजय रथ खींचने के दूसरे विधान को बाहर रैनी कहा जाता है। मंगलवार रात चुराकर ले गए रथ को बुधवार शाम ग्रामीणों द्वारा खींचकर वापस दंतेश्वरी मंदिर के सामने लाया जाएगा। इसके पहले कुम्हड़ाकोट जंगल में राज परिवार नवाखानी उत्सव मनाएगा। इसके पश्चात राज परिवार के सदस्य और अतिथि विजय रथ की सात परिक्रमा करेंगे। इसके बाद ही विजय रथ को खींचकर दंतेश्वरी मंदिर के सामने लाया जाएगा।