सुषमा के सृजन से झलका ग्राम्य सौंदर्य, ‘सुन्दर गांव हमारा’ कविता बनी ग्राम संस्कृति का आइना

रायपुर। “सुषमा के स्नेहिल सृजन” शीर्षक से लोकभावनाओं को छूती कविताओं की श्रृंखला में छत्तीसगढ़ की चर्चित कवयित्री सुषमा प्रेम पटेल ने एक बार फिर ग्राम्य जीवन की अनुपम छवि को काव्य के रंगों में सजाया है। उनकी नवीनतम रचना “सुन्दर गांव हमारा” सोशल मीडिया से लेकर साहित्यिक मंचों तक सराहना बटोर रही है।
“सुषमा के स्नेहिल सृजन”
‘सुन्दर गांव हमारा’
नदी किनारे गाँव सुहाना।
पीपल छाया शीतल पाना।।
घर-आँगन में रौनक छाए।
दूध-दही पहचान बनाए।।
चौपालों में गीत सुनाएँ।
मन को आनंदित कर जाएँ।।
’सुषमा’ सुंदर गाँव हमारा।
ग्राम्य दृश्य अनुपम है प्यारा।। (१)
कुंज-कुंज में सौरभ महके।
रंग-बिरंगी चिड़ियाँ चहके।।
हल जोते जब नर बलशाली।
करते खेतों की रखवाली।।
माटी की खुशबू मन भाए।
शीतल मंद बयार लुभाए।।
पनघट पर गागर छलकाएँ।
हँसी-ठिठोली मन बहलाएँ।। (२)
हरियाली से खेत सजे हैं।
ढोलक झाँझ मृदंग बजे हैं।।
मंगल गूँजे आँगन सारा।।
स्नेह सरलता से उजियारा।।
पगडण्डी सबको सरसाए।
ताल-तलैया मन हर्षाए।।
माँग रही अंजन-सी काली।
कजरी गाए मंगलवाली।।(३)
गोधन गंगा धरा सुहानी।
बसे यहाँ शुभता की रानी।।
सरिता निर्मल कल-कल बोले।
कोयल मृदु सुर गाती डोले।।
तुलसी चौरा दीप जलाते।
साँझ सवेरे मंगल गाते।।
हर शुभ कारज मिलकर होते।
सुख की नींद सभी जन सोते।। (४)
_कवयित्री सुषमा प्रेम पटेल
कविता की हर पंक्ति में ग्राम जीवन की सादगी, श्रमशीलता, प्राकृतिक समरसता और सांस्कृतिक परंपरा की मधुर झलक मिलती है। खेतों की हरियाली, चिड़ियों की चहचहाहट, पनघट की हँसी-ठिठोली, और घर-आँगन में गूंजते मंगलगान – ये सब मिलकर एक ऐसा दृश्य रचते हैं, जो पाठक को उसके अपने गाँव की गोद में पहुँचा देता है।
कवयित्री सुषमा प्रेम पटेल, रायगढ़ एवं रायपुर की साहित्यिक धरती से जुड़ी हुईं हैं और ग्रामीण परिवेश की सहजता को अपनी रचनाओं में विशेष स्थान देती हैं। उनकी लेखनी न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि पाठकों को अपनी जड़ों से जोड़ने का सशक्त माध्यम बन जाती है।
कविता की पंक्तियाँ न केवल समरसता का भाव रचती हैं, बल्कि यह संकेत देती हैं कि जब जीवन सरल होता है, तो सुख स्वाभाविक रूप से बसता है।
‘सुन्दर गांव हमारा’ आज के डिजिटल दौर में गाँव की आत्मा को सजीव कर रहा है। यह कविता सिर्फ एक काव्य रचना नहीं, बल्कि एक भावनात्मक पुल है – जो शहर और गाँव के बीच के फासले को पाटने का कार्य कर रही है।
यदि आप भी गाँव की मिट्टी से जुड़े हैं, तो ‘सुषमा’ की यह कविता आपको ज़रूर अपनी जड़ों की ओर लौटा लाएगी।