आजादीे से पहले भी गुलज़ार थी भोपालपटनम रियासत, अब खंडहर में तब्दील हो रहे बचे स्मारक
जगदलपुर। बस्तर संभाग अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों के लिए भी जाना जाता है। यहां ऐसी कई धरोहर हैं जो सालों पुरानी है, रियासतकालीन हैं। इन प्राचीन धरोहरों का अपना अलग महत्व है। ये धरोहर संभाग की पहचान हैं। ऐसी ही एक पुरातात्विक धरोहर है 1900 ईसवीं में बना बीजापुर का राजमहल। बीजापुर के राजमहल की भव्यता देखते ही बनती है, लेकिन संरक्षण के अभाव में आज ये राजमहल खंडहर में तब्दील हो चुकी है।
कभी ये महल आदिवासी ग्रामीणों से घिरा होता था, लेकिन आज इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। दक्षिण बस्तर में फोतकेल, पामेड, कुटरू, भोपालपट्टनम, सुकमा, चिंतलनार, कोत्तापली, परलकोट प्रमुख जमींदारियां रहीं हैं। इनमें कुटरू सबसे बड़ी जमींदारी रही तो वही फोतकेल सबसे छोटी। आज भोपालपटनम जमीदारी का सूर्य अस्त हो चुका है। जमींदारियो के अस्तित्व के प्रतीक गढ़ अब ढहने लगे हैं। अब जमीदारों की ठाठ के किस्से मशहूर हैं, जो आलीशान दुर्गम खंडहर में तब्दील किस्से, कहानियों और इतिहास का हिस्सा मात्र हैं।
आदिवासी ग्रामीण भोपालपटनम में राजा के रक्षक हुआ करते थे। उनके चारों ओर पहरेदारी किया करते थे। आदिवासी ग्रामीण 24 घण्टे रक्षा में तैनात रहा करते थे। ये वो दौर था जब भोपालपटनम रियासत में बिना राजा की इज़ाजत के प्रवेश वर्जित था।
वर्ष 1795 में अंग्रेजों के शासन काल मे एक अंग्रेज अधिकारी को काफी मशक्कत करने और राजा की अनुमति के बाद ही भोपालपटनम में प्रवेश करना पड़ा था, उस अंग्रेज अधिकारी का नाम है एसिब्लंड। वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश काल में भोपालपटनम एक अच्छी जमींदारी थी। जिसका कुल परिक्षेत्र 722 वर्ग फिट रहा। जहाँ 1908 की राजमहल रही। पुलिस थाना, अभियंता कार्यालय और तहसील कार्यालय भी बना हुआ था। इस इलाके में सागौन जैसी कीमती लकड़ियों को आय का स्रोत माना जाता था। उस दरम्यान गोदावरी व इंद्रावती नदी निर्यात के जरिये थे।
मध्यकाल से रियासत काल तक ये रहीं जमींदारियां..
बस्तर में मध्यकाल से लेकर रियासत काल तक शासन संचालन में जमींदारियो की बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। बस्तर में फोतकेल, पामेड, कुटरू, भोपालपट्टनम, सुकमा, चिंतलनार, कोत्तापली, परलकोट प्रमुख जमींदारियां रही हैं। इनमें कुटरू सबसे बड़ी जमींदारी रही, तो वहीं फोतकेल सबसे छोटी।
चालुक्य शासन से पूर्व बस्तर के नाग राजाओं ने बस्तर को गढ़ों में विभाजित कर नायकों को नियुक्त किया था। जमींदारियों का विकास चौदहवीं सदी में वारंगल से आए अन्नमदेव के बस्तर पदार्पण के साथ हुआ। वारंगल में हुए तुगलकी आक्रमण के कारण काकतीय साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो चुका था। वारंगल के शासक प्रताप रुद्र काकतीय बुरी तरह से परास्त हो चुके थे। अनुज अन्नमदेव ने पड़ोसी चक्रकोट (बस्तर) में प्रवेश कर “साम दाम दण्ड भेद” के माध्यम से अपना शासन स्थापित किया। यहां चक्रकोट के नागवंशियो की महान विरासत आपसी सामंजस्य और कमजोर नेतृत्व के कारण पतन की ओर बढ़ रही थी। अन्नमदेव महाराज ने इन्हीं कमजोरियों का फायदा उठाकर बस्तर के बड़े क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा लिया।अन्नमदेव के साथ कुछ प्रमुख सहयोगी एवं सेवादार भी वारंगल से यहां आए थे। जिन्हें उनकी सेवा के बदले जमींदारी देकर उपकृत किया।
ऐसे ही अन्नमदेव के एक प्रमुख सहयोगी थे नाहर सिंह भोई। नाहर सिंह भोई अन्नमदेव महाराज के पालकी वाहक थे। उन्होंने पालकी में अन्नमदेव महाराज को बैठाकर चक्रकोट (बस्तर) में प्रवेश किया। अनुश्रुति प्रचलित है कि मार्ग में एक बड़ा सा अजगर अचानक सामने आ गया था। तब नाहर सिंह ने अपने सूझबूझ से अजगर को हटाकर मार्ग प्रशस्त किया था, इस कारण इन्हें पामभोई की उपाधि दी गई। ‘पाम’ अजगर को कहा जाता है। नाहर सिंह और उसके पूर्वजों ने काकतीय शासकों की बहुत सेवा की थी। उन पर होने वाले हर आक्रमण का वीरता पूर्वक सामना किया था। इन सभी सेवाओं के बदले नाहर सिंह पामभोई को अन्नमदेव महाराज ने भोपालपट्टनम का जमींदार बनाया।
इंद्रावती और गोदावरी के तट पर स्थित भोपालपट्टनम नाग युग में चक्रकोट राज्य का मुख्य बंदरगाह था। स्थानीय बुजुर्ग ने कहा कि पटनम दक्षिण भारतीय शब्द है जिसका अर्थ है बंदरगाह, वहीं भोपाल भूपाल के अपभ्रंश से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है राजा का बंदरगाह। वर्तमान में यहां 1900 ईसवीं में बना हुआ विशाल राजमहल है, जो कि अब खंडहर में तब्दील होता जा रहा है।
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ब्रिटिश काल में भोपालपटनम एक जमींदारी थी, जिसका कुल क्षेत्रफल 722 वर्गमीटर था। जिसके अंतर्गत 139 गांव आते थे। जमींदारी का मुख्यालय भोपालपटनम नगर था, जहां वर्ष 1908 से पहले ही राजमहल, अस्पताल, स्कूल, पोस्ट ऑफिस, पुलिस कार्यालय, अभियंता कार्यालय और तहसील कार्यालय आदि बनाए गए थे। आज राज महल किस हाल में है देख कर उसकी भव्यता का अंदाजा तो लगता है। साथ ही दुख भी होता है कि इसके ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को दरकिनार कर दिया गया और इसका संरक्षण नहीं हो पाया है।
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08 मांझी और 01 चालकी परगनों में बंटी थी पूरी जमींदारी
प्रशासनिक रूप से भोपालपटनम जमींदारी 09 परगनों में बंटी थी। जिसमें से 08 मांझी परगने थे और 01 चालकी परगना था। यहां की जमींदारी का मुख्य स्रोत सागौन जैसी कीमती इमारती लकड़ी और वनोपज थे, जिसका गोदावरी और इंद्रावती नदी मार्ग से निर्यात किया जाता था। राजधानी भोपालपटनम में उस दौर में समुचित विद्युत व्यवस्था उपलब्ध थी नगर में बिजली का वितरण जमींदार की ओर से किया जाता था। जिसके लिए एक जनरेटर भी राजमहल परिसर में स्थापित किया गया था।
बस्तर-पर्यटन क्षेत्र में एक और अध्याय जोड़ सकती है ये धरोहरें
आज शासन-प्रशासन को ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों की सुध लेने की जरूरत है। जिससे बस्तर की संस्कृति युगों तक जानी जाए व भावी पीढ़ी बस्तर के इतिहास से अनभिज्ञ न रहे। आप इस उदाहरण से ही समझिए राजमहल को बचाया जाना कितना महत्वपूर्ण है, यह रियासत कालीन बस्तर का शेष बचा हुआ स्मारक है, जो सरकारों की अनदेखी की भेंट चढ़ता जा रहा है। बावजूद इसके कि थोड़ी सी देख-रेख और संधारण से इसमें चार चांद लग सकते हैं। साथ ही यह पर्यटन के क्षेत्र में बस्तर को एक और महत्वपूर्ण कड़ी से जोड़ सकती है।