जगदलपुर। आजादी के 75वें वर्षगांठ के अवसर पर आजादी के अमृत महोत्सव के तहत भारत सरकार के पर्यटन विभाग के क्षेत्रीय निदेशालय द्वारा जगदलपुर में आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के तहत आज स्कूली बच्चों को बस्तर की संस्कृति, परंपरा और धरोहरों की जानकारी दी गई। इसके साथ ही इन बच्चों को वीर गुण्डाधूर की जन्मस्थली नेतानार का भी भ्रमण कराया गया।
छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल, प्रयास आवासीय विद्यालय और आदर्श विद्यालय माड़पाल के विद्यार्थियों को सबसे पहले जगदलपुर में हेरीटेज वाॅक के माध्यम से यहां की संस्कृति, परंपराएं और धरोहरों की जानकारी दी गई। इन बच्चों को दंतेश्वरी मंदिर, सिरहासार भवन, जगन्नाथ मंदिर और गोल बाजार का भ्रमण कराते हुए इन स्थानों से संबंधित महत्वूपर्ण जानकारियां दी गई। इसके साथ ही ऐतिहासिक दशहरा महोत्सव और उनसे जुड़ी परंपराओं के साथ ही यहां की विभिन्न समुदायों के सहयोग से आयोजित इस भव्य उत्सव के संबंध में भी बच्चों को विस्तार से बताया गया। भूमकाल आंदोलन के समय विद्रोह के कारण जिन आंदोलनकारियों को गोलबाजार में फांसी दी गई थी, उस इमली के पेड़ के दर्शन भी विद्यार्थियों को कराया गया।
स्कूली विद्यार्थियों को इसके साथ ही नेतानार ग्राम का भी भ्रमण कराया गया, जो वीर गुण्डाधूर की जन्म व कर्मस्थली रही है। यहां स्थित गुण्डाधूर की विशाल प्रतिमा में पुष्प अर्पित कर उन्हें नमन किया गया और उनके द्वारा किए गए कार्यों को याद किया गया। इस अवसर पर पर्यटन विभाग के मुंबई क्षेत्रीय निदेशक श्री श्री वेंकटेशन दत्तारेयन ने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव हर भारतीय का उत्सव है। इस उत्सव में ऐसे नायकों को याद किया जा रहा है, जिन्होंने आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, किन्तु इहिसास में उन्हें वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे अधिकारी थे। ऐसे नायकों की जानकारी सभी भारतीयों को हो और उन्हें भी वह सम्मान मिले, जिसके वे अधिकारी हैं। इसी प्रयास के तहत आज यहां धुरवा समाज के युवा क्रांतिकारी की पावन धरती पर आए हैं, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आदिवासियों में जनजागरुकता लाई थी। अपने अद्भुत नेतृत्व क्षमता के कारण उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध आम की टहनियों और मिर्च के माध्यम से ऐसा विद्रोह किया, कि वे आमजन के नायक बन गए। अपनी चतुराई से लगातार अंग्रेजों को छकाने और अपने अधिकारों के लिए निरंतर आदिवासी समाज को संगठित करने के लिए उन्हें जाना जाता रहेगा। उन्होंने कहा कि आजादी के इस नायक की भूमि पर पहुंचकर उन्हें नमन करना एक सौभाग्य की बात है।