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भगवान श्रीजगन्नाथ का दर्शन वर्जित-अनसर काल जारी रहेगा 25 जून तक

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अनसर का शाब्दिक अर्थ अन+अवसर = अनवसर होता है, अर्थात भगवान के दर्शन का उचित अवसर नहीं होना

जगदलपुर। रियासत कालीन बस्तर गोंचा पर्व 2025 देव स्नान चंदन जात्रा पूजा विधान 11 जून बुधवार ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि से प्रराम्भ हो चुका है, शताब्दियों से (617 वर्षों) चली आ रही रियासत कालीन परंपरानुसार 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के ब्राह्मणों के द्वारा बस्तर गोंचा पर्व के विविध पूजा विधान संपन्न करवाये जायेंगे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंदन जात्रा पूजा विधान के पश्चात भगवान श्रीजगन्नाथ का 15 दिवसीय अनसर काल की अवधि में भगवान श्रीजगन्नाथ अस्वस्थ होते हैं तथा भगवान के अस्वथता के हालात में दर्शन वर्जित होते हैं । भगवान श्रीजगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा और बलभद्र स्वामी का श्रीमंदिर में इन दिनों अनसर काल आषाढ़ कृष्ण पक्ष अमावस्या 25 जून तक जारी रहेगा। इस दाैरान भगवान श्रीजगन्नाथ के स्वास्थ्य लाभ के लिए औषधियुक्त भोग का अर्पण 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के सेवादारों एवं पंडितों के द्वारा किया जा रहा है । औषधियुक्त भोग के अर्पण के पश्चात इसे श्रृद्धलुओं में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है । विशेष औषधियुक्त प्रसाद का पूण्य लाभ श्रृद्धालु अनसर काल के दौरान श्रीजगन्नाथ मंदिर में पहुचकर प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन दर्शन वर्जित होगा।

भगवान जगन्नाथ के अनसर काल की व्याख्या करते हुए 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के वरिष्ठ सदस्य एवं भगवान श्रीजगन्नाथ के रियासत कालीन पूजा विधान के जानकार विवेक पांड़े ने बताया कि बस्तर गोंचा पर्व में इन दिनों भगवान श्रीजगन्नाथ का अनसर काल की अवधि 25 जून तक जारी रहेगा । भगवान जगन्नाथ के अनसर काल मे दर्शन वर्जित होने के संबंध में जानने के लिए अनसर का साब्दिक अर्थ एवं इसके भावार्थ को समझना होगा। अनसर का साब्दिक अर्थ अन+अवसर = अनवसर होता है। अनवसर का भावार्थ उचित अवसर का नही होना कहलाता है । अर्थात भगवान श्रीजगन्नाथ के 15 दिवसीय अनसर काल मे भगवान श्रीजगन्नाथ भक्तो के स्वास्थ्य के लिए स्वयं अस्वस्थ हाेते है, अस्वस्थ होने पर भगवान श्रीजगन्नाथ अस्त-व्यस्त अवस्था मे रहते हैं, ऐसी अवस्था मे जगत के पालनकर्ता भगवान श्रीजगन्नाथ के दर्शन को शास्त्रो व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दोषपूर्ण माना गया है । इसीलिए भगवान जगन्नाथ के दर्शन 15 दिनों तक अनसर काल के दौरान वर्जित होता है।

उन्होने बताया कि भगवान श्रीजगन्नाथ अपने श्रद्धालुओं के वर्ष भर स्वास्थय के आशीष हेतु स्वयं अस्वस्थ होकर सभी के स्वास्थ्य के लिए औषधियुक्त भोग के अर्पण काे स्वीकार कर औषधियुक्त प्रसाद उपलब्ध करवाते हैं । जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ स्वामी विश्व के समस्त श्रद्धालुओं के स्वास्थय के लिए आयुर्वेद का औषधियुक्त प्रसाद ग्रहण करने का अवसर प्रदान करते हैं । भगवान श्रीजगन्नाथ स्वामी काे अर्पित औषधियुक्त भाेग वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मौसम के परिवर्तन के साथ स्वास्थ्य के लिए प्रसाद के रूप में लाभदायी सिद्ध होता है, अर्थात आस्था के प्रसादरूपी औषधि की उपलब्धता हमारे प्राचीन आयुर्वेद की व्यवस्था के आधार को प्रासांगिक बना देता है । ऐसा महात्म्य है, भगवान श्रीजगन्नाथ स्वामी काे औषाधियुक्त भोग का अर्पण एवं औषधियुक्त प्रसाद का जिसमे आद्यात्मिक-वैज्ञानिक आयाम इसमें समाहित है।

दिनेश के.जी. (संपादक)

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