“इंद्रावती टाइगर रिज़र्व” बना नक्सली रिज़र्व फॉरेस्ट, टाइगर रिजर्व से टाइगर हुए गायब, नक्सलवाद से इंद्रावती नेशनल पार्क हुआ अप्रासंगिक

जगदलपुर। इंद्रावती टाइगर रिजर्व बस्तर में बाघों का घर कहलाने वाला इंद्रावती टाइगर रिजर्व बाघों के लिए सुरक्षित पनाहगाह नहीं रह गया है। 1983 में टाइगर रिजर्व बनने के बाद से यहां बाघों की संख्या लगातार घट रही है। प्राकृतिक रूप से टाइगर (बाघों) कीआश्रय स्थल के रूप में 1978 में इंद्रावती नेशनल पार्क की स्थापना की गई थी। अब यह टाइगर रिजर्व टाइगर (बाघों) का नहीं वरन नक्सलियों का सुरक्षित आश्रय स्थल बन चुका है।
इंद्रावती टाइगर रिजर्व का पूरा क्षेत्र करीब 2799.08 वर्ग किमी है। यह क्षेत्र बाघ व वन भैंसों के लिए बस्तर संभाग में एकमात्र संरक्षित क्षेत्र माना जाताहै। इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बीजापुर जिले में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है। यह इंद्रावती नदी के किनारे बसा हुआ है, जिससे इसको अपना नाम मिला है। यह दुर्लभ जंगली भैंसे, की अंतिम आबादी वाली जगहों में से एक है।
उल्लेखनीय है कि इंद्रावती टाइगर रिजर्व संरक्षित वन क्षेत्र में बीजापुर जिले के अंतर्गत आने वाले सेण्डरा, पिल्लूर, सागमेटा आदि गांवों में पिछले दो दशक से नक्सलियों का सुरक्षित आश्रय स्थल बन चुका है और यहां पर जंगलों में विचरन करने वाले जीव जन्तु दूसरी जगह चले गये हैं या उन्हें शिकार कर हटा दिया गया है। इस प्रकार इस संरक्षित वन क्षेत्र में प्रवेश करना खतरे से खाली नहीं है। टाइगर (बाघों) सहित दूसरे वन्य जीवों की न केवल गणना प्रभावित हुई है वरन पार्क में पर्यटकों के साथ-साथ शोधार्थियों का पहुंच पाना भी मुश्किल हो गया है।
इंद्रावती नेशनल पार्क क्षेत्र के फरसेगढ़ से सागमेट, सेण्डरा, पिल्लूर आदि गांवों के पड़ाव में नक्सलियों की तगड़ी दखल है। पूरे क्षेत्र के रास्ते में नक्सलियों ने बैरियर खड़े कर रखे हैं, वहीं माइल स्टोन, पेड़ के तने, घरों की दीवारों के अलावा गांव-गांव में स्मारक खड़े हैं। यहां जनताना अदालत और सभाओं के आयोजन नक्सली कर रहे हैं। विभागीय दस्तावेज के मुताबिक 1984 की गणना में यहां 34 से अधिक बाघ थे। 2014 की गणना में यहसंख्या घटकर 10 रह गई है। टाइगर रिजर्व के आठ रेंज में सौ से अधिक बीटगार्ड व फॉरेस्ट गार्ड की तैनाती है लेकिन हकीकत यह है कि अंदरूनी इलाकों में कभी-कभार ही विभाग को कोई अधिकारी या कर्मचारी पहुंचता हो।
नक्सलियों की वजह से कोर क्षेत्र में प्रवेश करने की हिमाकत आज भी कोई नहीं करता। टाइगररिजर्व का यह इलाका पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में है। इस इलाके में घुसने की हिमाकत विभाग कभी नहीं कर सका। यहां के बाघों पर न कभी कोई शोध हुआ और किसी प्राणी विज्ञानी ने इनके व्यवहार या फिर रहवास के बारे में जानने की कोशिश की। बाघों के संरक्षण के नाम पर केवल टाइगर रिजर्व का नाम बस दे दिया गया है। नक्सलवाद का दंश झेल रहा बीजापुर का इंद्रावती नेशनल पार्क, टाइगर रिजर्व को यदि जल्द ही इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया तो मात्र फाइलों में सिमटकर नेशनल पार्क, टाइगर रिजर्व रहेगा। जहां ना तो टाइगर होगा और न ही नेशनल पार्क होगा। यहां यह कहा जाना अप्रासंगिक नहीं होगा कि नक्सलवाद से इंद्रावती नेशनल पार्क अप्रासंगिक हुआ।