असंवेदनशील विकास की एक ऐसी नाव जिसने ले ली मासूम की जान, 36 घंटे से इन्तज़ार में घाट पर बैठी रोती बिलखती ‘माँ’, नहीं मिला कोई सुराग, रेस्क्यू ऑपरेशन जारी

“नदी में बहे मासूम मानु अटामि की माँ”

बीजापुर। कल इंद्रावती नदी के सतुआ बांगोली घाट से दुखद और सरकार को आइना दिखाने वाली दुखदाई खबर सामने आई थी। लकड़ी के बने अस्थाई नाव में 9 ग्राम पंचायत के 30 से ज्यादा गांव के हजारों बाशिंदे नाव से आर-पार होते हैं। कई दफे नाव पलटने की घटनाएं इस घाट पर हो चुकी हैं। प्रशासन के दावे और सरकार के विकास के दावे नाकाफी साबित हो रहे हैं। नदी में बहे एक साल की मासूम मानु अटामि की माँ ने 36 घंटे के बाद भी अपने बच्चे की वापसी की उम्मीद पाल रखी है। घाट पर रोटी बिलखती डटी हुई है।

पूरा मामला नेलसनार के पास NH 63 से महज 300 मीटर दूर घाट का है, जहां ग्रामीणों की बनायी लकड़ी की नाव से नदी पार करना काल बन गया ।

“पलटी लकड़ी की डोंगी का नाविक

पूरा मामला नेलसनार के शतुआ घाट पर 15 ग्रामीणों के एक लकड़ी के नाव में सफर करते हादसे में बचने और मौत के आगोश में समा जान का हैनेलसनार से बेलनार जाने के लिए निकली नाव में नाविक सहित कुक 15 महिला,पुरूष शरीर का संतुलन बनाकर डोंगी पर सवार थे। उफनती नदी में पहुंचते ही अचानक एक की जद में आकर नाव का संतुलन बिगड़ गया। डरे सहमे आदिवासी ग्रामीण,महिलाएं अपनी जान बचाने नाव से कूदे लेकिन ये उनका सबसे दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय था, जिसका खामियाजा एक महिला ने अपने 1 साल के दुधमहे बच्चे को खोकर चुकाया है। वो बेलनार निवासी माँ अब तक शतुआ घाट पर डटी है कि सरकार उसके बच्चे को जिंदा न सही उसकी लाश को उसको सौंप दे।सात दशक से ग्रामीण इन्हीं हालातों में डोंगिनुमा नाव में सफर करने को मजबूर हैं। लालतंत्र और लोकतंत्र के बीच 9 ग्राम पंचायत के 30 गांवों के ग्रामीण अपनी लोकतांत्रित आजादी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। कई सरकारें आयी और चली गईं लेकिन इनकी जिंदगी में अब तक कोई स्वर्णिम युग नही जुड़ा। रोजाना 700-800 ग्रामीण और माताएं अपने दुधमहे मासूमों के साथ इस लोकतंत्र की लाइफलाइन को लांघने को मजबूर हैं।

“पलटी डोंगी से कूद कर बचने वाली महिला”

सरकार ने शबरी नदी पर 7 पुल बना दिये मगर दक्षिण बस्तर बीजापुर की इस लाइफलाइन को अब तक अनछुआ छोड़ा हुआ है, दर्जनों घाटों में सुरक्षा के कोई मुक्कमल इंतेजाम तक नही हैं ,आदिवासी महिलाएं खुले में भीगे हुए कपड़े बदलने को मजबूर हैं।

सरकार ने बस्तर के शबरी नदी में 7 पल बना दिये लेकिन दक्षिण बस्तर की लाइफलाइन बीजापुर जिले की इंद्रावती नदी पर अब तक पुलों का श्रीगणेश नहीं किया है। बस्तर की आदिवासी महिलाओं को नदी के पानी मे भीगकर निर्वस्त्र होकर कपड़े बदलने की बड़ी और दुखद मजबूरी है। सरकार और प्रशासन की अनदेखी का खामियाज़ा इन हजारों ग्रामीणों को सरकार की बेरुखी का हर्जाना चुकाना पड़ रहा है।

नेशनल हाइवे से 300 मीटर की दूरी पर नाव पलटने और 4 के लापता होने की घटना घटी है। यह पहली घटना नही है जब इस तरह की कोई घटना घटी है। कई आदिवासी अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं। कई बार ग्रामीण पुल और आधुनिक नाव की मांग कर चुके हैं लेकिन अब तक 70 दशक बीत चुके हैं किसी दल ने इनकी मार्मिक दर्द और पीढ़ा पर कोई कार्यवाही नहीं की है।

इस पूरे मामले में भैरमगढ़ तहसीलदार विनोद साहू ने बताया कि रेस्क्यू अभियान चलाया जा रहा है कल देर रात तक अभियान चला और सुबह 8 बजे से पुनः रेस्क्यू अभियान शुरू किया गया है। पूरा प्रसाशन लापता महिलाओं के पतासाजी जुटा हुआ है।

36 घंटे के बाद भी SDRF की टीम के हाथ खाली ही हैं,जगदलपुर से भी गोताखोर बुलाये गए हैं, जो रेसकुए में लग गए हैं,तहसीलदार विनोद साहू ने पूरा जिम्मा संभाल हुआ है।

36 घंटे बाद भी रेस्क्यू टीम के हाथ खाली हैं, एक बार फिर कल लापता महिला और मासूम बच्चे की तलाश की जाएगी। विडंबना देखिये: जिस घाट पर 4 लोग बहे और पूरा प्रसाशन उनकी पतासाजी में लग गया है। वहीं की एक तस्वीर और निकलकर सामने आई है। एक तरफ रेस्क्यू के लिए अत्याधुनिक बोट का इस्तेमाल किया जा रहा है दूसरी तरफ जिस बोट के पलटने से गंभीर हादसा हो चुका है उसी बोट पर आदिवासी नदी उस पार की सफर करने को मजबूर हैं। प्रशासन के आला अधिकारी दबी जुबान में अपनी वेदना मजबूरी के साथ व्यक्त कर रहे हैं।

देखें नदी में बहे लोगों का इन्तज़ार, लकड़ी की डोंगी में जोखिमभरे सफर की वीड़ियो …..

Dinesh KG
सिर्फ खबरें लगाना हमारा मक़सद नहीं, कोशिश रहती है कि पाठकों के सरोकार की खबरें न छूटें..

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